



काबुल: पाकिस्तान और ईरान ने पिछले दो सालों में लाखों अफगान शरणार्थियों को देश से बाहर निकाल दिया है। जिसके बाद अब अफगानिस्तान के तालिबान शासकों ने अपने देश की नदियों और नहरों के पानी को अपने लोगों के इस्तेमाल के लिए पड़ोसी देशों में जाने से रोकने का प्लान तैयार किया है। तालिबान के फैसले से पाकिस्तान, ईरान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों की नींद हराम हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान की योजना अब अपने देश की नदियों और नहरों पर नियंत्रण स्थापित करने की है।



रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान सरकार ने 2021 में सत्ता संभालने के बाद बड़े पैमाने पर नहरों और बांधों के निर्माण की शुरुआत की, जिससे पड़ोसी देशों, ईरान, पाकिस्तान और मध्य एशियाई देशों के साथ नए विवाद खड़े हो गए हैं। तालिबान का दावा है कि अफगानिस्तान को खेती और रोजमर्रा की जरूरतों के लिए खुद पानी की जरूरत है और इसीलिए उसने पानी को लेकर कई प्रोजेक्ट शुरू किए हैं। तालिबान का कहना है कि पानी सुरक्षित करना उसकी संप्रभुता का हिस्सा है, लेकिन तालिबान के फैसले ने पड़ोसी देशों के साथ तनाव काफी बढ़ा दिए हैं।
कोश तेपा नहर को लेकर मध्य एशिया में अलर्ट
सबसे ज्यादा विवाद कोश तेपा नहर को लेकर है, जो उत्तरी अफगानिस्तान में 5,60,000 हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई के लिए बनाई गई एक विशाल परियोजना है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह नहर अमु दरिया की धारा का 21% तक मोड़ सकती है। चूंकि यही नदी उज़्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और कज़ाख़स्तान के लिए जीवनरेखा है, इसलिए इन देशों में चिंता गहराती जा रही है। यह आशंका है कि पहले से ही सिमटती अरल सागर की स्थिति और बिगड़ सकती है। तालिबान के अधिकारी दावा करते हैं कि नदी में पर्याप्त पानी है, लेकिन पड़ोसी देश इसे क्षेत्रीय अस्थिरता की वजह बता रहे हैं। जल प्रशासन विशेषज्ञ मोहम्मद फैजी ने चेतावनी दी है कि “अभी चाहे कितना भी दोस्ताना रुख क्यों न हो, नहर के चालू होने पर उज़्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान को किसी न किसी समय इसके परिणाम भुगतने होंगे।”
ईरान ने हेलमंद विवाद को फिर से उठाया
इसके अलावा अफगानिस्तान का पश्चिमी पड़ोसी ईरान, एकमात्र ऐसा देश है जिसके पास हेलमंद नदी पर 1973 में दस्तखत किया गया एक औपचारिक जल-बंटवारा संधि है। लेकिन इस समझौते का कभी भी पूरी तरह से पालन नहीं किया गया। तेहरान अक्सर काबुल पर ऊपरी बांधों के माध्यम से जल प्रवाह को रोकने या अपने हिसाब से नियंत्रित करने का आरोप लगाता रहा है, खासकर सूखे के दौरान। इसको लेकर तालिबान का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की कमी और भी बदतर हो गई है, जिससे वे और पानी नहीं छोड़ पा रहे हैं। अफगानिस्तान एनालिस्ट्स नेटवर्क की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगान अधिकारियों का यह भी मानना है कि खराब प्रबंधन और राजनीतिक उपेक्षा के कारण उन्हें लंबे समय से हेलमंद के जल का उचित हिस्सा नहीं दिया जा रहा है।
इसी तरह हरीरुद नदी पर बने नए पाशदान बांध ने भी ईरान और तुर्कमेनिस्तान की चिंताओं को बढ़ा दिया है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि दशकों के युद्ध के बाद अब अफगानिस्तान स्थिरता की तरफ बढ़ रहा है और जैसे जैसे देश स्थिर होगा, ऐसे विवाद बढ़ते जाएंगे, क्योंकि अफगानिस्तान के शासक अफगानिस्तान में बहने वाली नदियों पर अपनी पकड़ मजबूत करेंगे।
काबुल बेसिन से पाकिस्तान की नींद हराम
पूरब की तरफ से काबुल नदी, पाकिस्तान में जाकर सिंधु में मिलती है। हालांकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच इस पर कोई औपचारिक संधि नहीं है, लेकिन अगर तालिबान नए प्रोजेक्ट तेजी से आगे बढ़ाते हैं तो दोनों देशों के बीच विवाद बढ़ सकते हैं। पाकिस्तान पहले ही अपनी कृषि और सिंचाई व्यवस्था के लिए पानी की कमी से जूझ रहा है। भारत ने सिंधु जल संधि स्थगित कर इस्लामाबाद की पहले ही नींद उड़ा रखी है और अब अगर तालिबान भी पानी रोकने का फैसला करता है तो वो दो तरफ से फंस जाएगा। फिलहाल अफगानिस्तान की आर्थिक स्थिति और तकनीकी कमजोरी की वजह से इस प्रोजेक्ट का पूरा होना थोड़ा मुश्किल लग रहा है, लेकिन तालिबान भारत और चीन से तेजी से संबंध सुधार रहा है और हो सकता है आने वाले वक्त में इस प्रोजेक्ट को लेकर तालिबान कोई सौदा करने में कामयाब हो जाएगा। तालिबान लंबे समय से काबुल नदी पर बांध बनाकर पानी को कंट्रोल करने की कोशिश करता रहा है।