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बच्ची ने लगाया प्राइवेट पार्ट में उंगली डालने का आरोप… सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है। इसमें कहा गया है कि अगर नाबालिग लड़की बयान देती है कि उसके प्राइवेट पार्ट में आरोपी ने उंगली डाली थी तो क्या ये मामला पोक्सो पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट (यानी रेप) के तहत बनेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को एग्जामिन करने का फैसला किया है कि क्या लड़की के ऐसे बयान पर पोक्सो के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट के तहत केस बनेगा?

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अजय रस्तोगी की अगुवाई वाली बेंच ने केरल हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दाखिल याचिका पर 70 साल के आरोपी को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है। केरल हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि जो तथ्य हैं उसमें इस बात के सबूत नहीं थे कि पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट का मामला है। मामले में आरोपी को सेक्सुअल असॉल्ट के तहत दोषी करार दिया गया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि लड़की के बयान से ये जाहिर नहीं होता है कि उसके प्राइवेट पार्ट में फिंगर डाली गई थी। ऐसे में पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट का केस नहीं बनता है। पोक्सो की धारा-3 बी में पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को परिभाषित किया गया है।

इसके तहत कहा गया है कि अगर लड़की के प्राइवेट पार्ट में आरोपी कोई भी ऑब्जेक्ट डालता है तो वह पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट होगा। या फिर लड़की के शरीर में आरोपी अपना प्राइवेट पार्ट कहीं भी डालता है तो वह भी पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट कहा जाएगा। कानूनी जानकार और हाई कोर्ट के सरकारी वकील अजय दिग्पाल कहते हैं कि 18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का सेक्सुअल नेचर का किया गया अपराध इस कानून के दायरे में आता है।

इस कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के लड़के या लड़की दोनों को ही प्रोटेक्ट किया गया है। इस तरह के मामलों की सुनवाई स्पेशल कोर्ट में होती है और बच्चों के साथ होने वाले अपराध के लिए उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान किया गया है। इस एक्ट के तहत बच्चों को सेक्सुअल असॉल्ट, सेक्सुअल हरासमेंट और पोर्नोग्राफी जैसे अपराध से प्रोटेक्ट किया गया है। 2012 में बने इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा का प्रावधान किया गया है।पोक्सो कानून की धारा-3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को परिभाषित किया गया है।

इसके तहत कानून कहता है कि अगर कोई शख्स किसी बच्चे के शरीर के किसी भी हिस्से में प्राइवेट पार्ट डालता है या फिर बच्चे के प्राइवेट पार्ट में कोई भी ऑब्जेक्ट या फिर प्राइवेट पार्ट डालता है या फिर बच्चों को किसी और के साथ ऐसा करने के लिए कहा जाता है या फिर बच्चे से कहा जाता है कि वह ऐसा उसके (आरोपी) साथ करे तो यह सेक्शन-3 के तहत अपराध होगा और इसके लिए धारा-4 में सजा का प्रावधान किया गया है। इसके तहत दोषी पाए जाने पर मुजरिम को कम से कम 7 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान किया गया है।

किस प्रावधान के तहत क्या है सजा
वहीं, धारा-7 के तहत सेक्सुअल असॉल्ट को परिभाषित किया गया है। एडवोकेट रेखा अग्रवाल के मुताबिक अगर कोई शख्स सेक्सुअल मंशा से किसी बच्चे का प्राइवेट पार्ट को टच करता है या सेकसुअल मकसद से बच्चे को टच करना है या फिर अपने प्राइवेट पार्ट को बच्चों से टच कराता है तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर धारा-8 के तहत 3 साल से 5 साल तक कैद की सजा का प्रावधान किया गया है।

धारा-11 में बच्चों के साथ सेक्सुअल हरासमेंट को परिभाषित किया गया है। इसके तहत कानून कहता है कि अगर कोई शख्स गलत नियत से बच्चों के सामने सेक्सुअल नेचर का हावभाव दिखाता है या फिर उसे कोई प्राइवेट पार्ट दिखाता है या फिर उसे ऐसा करने के लिए कहा जाता है या फिर उसे पोर्नोग्राफी दिखाई जाती है तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान किया गया है।

पोर्नोग्राफी के खिलाफ प्रावधान में अगर कोई शख्स बच्चों का इस्तेमाल पोर्नोग्राफी के लिए कहता है तो वह भी गंभीर अपराध है और ऐसे मामले में उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। बच्चों के साथ सेक्सुअल एक्ट करते हुए अगर उसका पोर्नोग्राफी किया जाता है तो वैसे मामले में कम से कम 10 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद तक हो सकता है। वहीं बच्चों के सेक्सुअल आर्गेन को दिखाने के मामले में पहली बार में 5 साल और दूसरी बार ऐसा करने के लिए 7 साल तक कैद की सजा हो सकती है।

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