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दुर्ग जिला इस चुनाव में भी बना सियासी हॉटस्पॉट, क्या है इसकी वजहें? एक्सपर्ट व्यू

दुर्ग : लोकसभा चुनावों के लिहाज से छत्तीसगढ़ का दुर्ग जिला इन दिनों चर्चा के केंद्र में है। दुर्ग एक राजस्व संभाग भी है। इसमें सात जिले दुर्ग, राजनांदगांव, बालोद, बेमेतरा, मोहला-मानपुर अंबागढ़ चौकी, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई और कबीरधाम शामिल हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल समेत विपक्षी कांग्रेस के चार उम्मीदवार और सत्तारूढ़ भाजपा के दो उम्मीदवार दुर्ग जिले से ही हैं। यही वजह है कि दुर्ग जिला एकबार फिर सियासी हॉटस्पॉट के रूप में तब्दील हो गया है।

राजनांदगांव लोकसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार भूपेश बघेल, बिलासपुर सीट से देवेंद्र यादव, महासमुंद सीट से ताम्रध्वज साहू और दुर्ग सीट से राजेंद्र साहू सभी दुर्ग जिले से हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पाटन विधानसभा सीट जबकि देवेंद्र यादव भिलाई नगर सीट (दुर्ग) से निवर्तमान विधायक हैं। ये भी दुर्ग जिले में आती हैं। ताम्रध्वज साहू छत्तीसगढ़ की पिछली कांग्रेस सरकार में गृह मंत्री थे। वह दुर्ग ग्रामीण सीट से विधानसभा चुनाव हार गए थे। इस बार वह महासमुंद सीट से दो-दो हाथ कर रहे हैं।

इसी तरह दुर्ग लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल और कोरबा सीट से सरोज पांडे भी दुर्ग जिले के रहने वाले हैं। विजय बघेल दुर्ग से मौजूदा सांसद भी हैं। सरोज पांडे ने पहले 2009 से 14 तक दुर्ग लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया था। राजनीतिक विश्लेषक आर. कृष्ण दास ने बताया कि जिला लंबे समय से राजनीतिक रूप से प्रासंगिक रहा है क्योंकि यह कांग्रेस के चंदूलाल चंद्राकर और मोतीलाल वोरा और भाजपा के ताराचंद साहू (जिन्होंने बाद में भाजपा छोड़ दिया) जैसे दिवंगत दिग्गजों का गृह क्षेत्र रहा है।

छत्तीसगढ़ के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके रमन सिंह भी दुर्ग राजस्व मंडल के तहत आने वाली राजनांदगांव सीट से चार बार चुने जा चुके हैं। विश्लेषक आर. कृष्ण दास ने बताया कि 2018 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बनने के बाद दुर्ग सुर्खियों में आया था। इसमें तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल और उनके तत्कालीन दो कैबिनेट सहयोगी ताम्रध्वज साहू और गुरु रुद्र कुमार दुर्ग जिले के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से चुने गए थे। अब लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस द्वारा उम्मीदवारों की घोषणा के साथ ही यह जिला एकबार फिर चर्चा का विषय बन गया है।

दास की मानें तो लोकसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों का चयन करते समय सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस का दुर्ग पर विशेष फोकस करना राज्य की राजनीति में जिले की अहमियत को दर्शाता है। भिलाई के शिक्षाविद् प्रोफेसर डीएन शर्मा ने कहा कि दुर्ग लंबे समय से राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण रहा है। दुर्ग जिले के ही कद्दावर नेता मोतीलाल वोरा ने अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में काम किया था।

प्रोफेसर डीएन शर्मा ने कहा- सबसे अच्छी बात यह कि दुर्ग ने कभी भी सांप्रदायिक हिंसा नहीं देखी है। यही नहीं जिले के नेताओं ने कभी सांप्रदायिक आधार पर राजनीति नहीं की है। इस लोकसभा चुनावों ने दुर्ग को एक बार फिर राज्य की राजनीति में केंद्र में ला दिया है क्योंकि दोनों मुख्य पार्टियों ने उम्मीदवारों के चयन में जिले के कद्दावर नेताओं पर भरोसा दिखाया है। बता दें कि छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों पर तीन चरणों में 19 अप्रैल, 26 अप्रैल और 7 मई को चुनाव होंगे और वोटों की गिनती एकसाथ 4 जून को होगी।

दुर्ग जिला 1906 में रायपुर से अलग कर के बनाया गया था। साल 1973 में दुर्ग जिले का विभाजन हुआ तब इससे अलग होकर राजनांदगांव जिला अस्तित्व में आया। साल 2012 में दुर्ग को फिर से बांटा गया और दो नए जिले बेमेतरा और बालोद बने। साल 1955 में दुर्ग जिले में भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना हुई थी। इसकी वजह से यह तेजी से विकसित हुआ और देश में एक बड़े आर्थिक केंद्र के रूप में सामने आया था। साल 2000 में छत्तीसगढ़ बनने के बाद, भिलाई एक एजुकेशन हब के रूप में सामने आया।

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