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पीएम आवास की ने किया निराश,अधूरे पड़े निर्माण, लोग हलाकान

नरसिंहपुर: हर किसी का एक सपना होता है कि उसका अपना एक घर हो, इस सपने को साकार करने के लिए शुरु की गई एक पहल का नाम है- पीएम आवास योजना। लेकिन जिस तरह सपने के पूरा होने से पहले नींद खुल जाए और ख्वाब अधूरा रह जाए, तो अफसोस होता है। कुछ इसी तरह की दास्तान इस योजना से भी जुड़ी है।

पीएम आवास योजना के हितग्राही सालों से तिरपाल के नीचे या कहीं सेप्टिक टैंक के पीछे रहने को मजबूर हैं।गाडरवारा तहसील की चीचली जनपद के इन घरों को देखकर महसूस किया जा सकता है कि जब किसी गरीब के सपने टूटते हैं, तो कितनी तकलीफ होती है।

ये वो लोग हैं जिन्होंने अपनी आधी जिंदगी कच्चे घरों में बिता दी और जब पक्के घर में रहने का सपना देखा, तो उसके पूरा होने की आस में बची जिंदगी बीत रही है। ये सपना दिखाया 2015 में शुरु हुई PM आवास योजना ने, जिसमें सरकार ने गरीबों को पक्की छत देने की बात कही।

पीएम आवास योजना नाम से गरीबों को ढाई लाख रुपए तीन किस्तों में मिलने थे, जिसकी पहली किस्त एक लाख रुपए जब मिली, तो नरसिंहपुर के चीचली के जीवनलाल की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। जीवन लाल ने अपनी झोपड़ी तोड़कर पक्का मकान बनाना शुरु कर दिया। दीवारें तो खड़ी हो गईं, लेकिन दूसरी किस्त के इंतजार में काम अटक गया। बारिश में तिरपाल तान कर रहने वाले मजदूर जीवन लाल 8-9 महीनों से दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर हैं।

यही हाल बेबी बी का भी है, जिनको बताया गया था कि उन्हें पीएम आवास योजना का लाभ मिलेगा, जिसके चलते उन्होंने अपना कच्चा मकान तोड़ लिया। योजना की पहली किस्त से मकान बनाना शुरू किया, लेकिन साल बीत गया, बेबी बी का ना तो मकान बना, और ना ही दूसरी किस्त निकली।

एक तरफ जहां बेबी बी गुस्सा है, तो वहीं बेबसी दर्शाते हुए इसी इलाके में रहने वाली वृंदा वर्तमान में परिवार के साथ रह रहे उस घर की तरफ ले जाती हैं, जिसे देखने के लिए मन को पक्का करना पड़ेगा। जी हां सेप्टिक टैंक के गड्ढे के ऊपर रहने को मजबूर वृंदा अपनी बेबसी को बयां कर रही हैं।

ऐसा नहीं है कि जिम्मेदार जनप्रतिनिधि पीएम आवास जैसी महत्वाकांक्षी योजना के प्रति सजग नहीं हैं, खुद क्षेत्र की स्थानीय विधायक पीएम आवास में हो रही धांधली और भ्रष्टाचार को लेकर लगातार विरोध कर रहे हैं, यहां तक कि कलेक्टर को भी वस्तु स्थिति से अवगत करा चुकी है लेकिन कहानी फिर भी ढाक के तीन पात जैसी ही है।

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