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साहीवाल-गिर प्रजाति की गायों में इजाफा

दुर्ग   तीन बरस पहले मतवारी गाँव में साहीवाल और गिर प्रजाति की गायें मुश्किल से नजर आती थीं। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की गोवंश संवर्धन के लिए लाई गई योजना के बाद गौठानों की सूरत तेजी से बदली है। पहले यहां देसी गायें अधिक दिखती थीं अब संकर गायें ज्यादा नजर आती हैं।

मतवारी के गौठान का उदाहरण लें, गौठान में हर दिन लगभग पांच सौ गोवंश इकट्ठा होता है, इनमें से अधिकतर गिर-साहीवाल प्रजाति के मवेशी हैं। तीन बरसों में कृत्रिम गर्भाधान के कार्यक्रम को यहां पर युद्धस्तर में किया गया। इसका असर दिखने लगा है, यहां लंबे कान वाली गिर प्रजाति की गायें अधिक दिखती हैं।

गिर और साहीवाल प्रजाति के संकर नस्ल वाले गोवंश भी हैं, जिनके पुट्ठे समतल हैं। इस संबंध में जानकारी देते हुए असि. वेटरनरी सर्जन डॉ. सीपी मिश्रा ने बताया कि नस्ल संवर्धन को लेकर शासन की नीति एवं दिये गये लक्ष्यों के पालन के अनुरूप तेजी से कार्य किया जा रहा है। कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे की मानिटरिंग में नस्लसंवर्धन के लिए नियमित कैंप लगाये जा रहे हैं।

यहां कार्य कर रहे पशुधन विकास विभाग के क्षेत्रीय अधिकारी श्री मोहित कामले ने कहा कि मतवारी में हर साल सौ जानवरों का कृत्रिम गर्भाधान कराया जा रहा है। कार्यक्रम की गति यही रहने पर अगले सात सालों में यहां पर नस्ल संवर्धन का कार्य पूरा हो जाएगा।

उन्होंने कहा कि इसके लिए सात पीढ़ियों का वक्त लगता है। तेजी से नस्ल संवर्धन का कार्य होने से यहां नस्ल संवर्धन की गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं। जिला पंचायत सीईओ श्री अश्विनी देवांगन ने बताया कि नस्ल संवर्धन से आजीविकामूलक गतिविधियों में विस्तार भी होता है।

अतिरिक्त दूध के उत्पादन को गाँव वाले नजदीकी गाँवों में बेच रहे हैं। उपसंचालक पशुधन विकास विभाग डॉ. एमके चावला ने बताया कि जिले में विभागीय अधिकारियों को कृत्रिम गर्भाधान के लक्ष्य दिये गये हैं और इसे पूरा करने की दिशा में युद्धस्तर पर कार्य किया जा रहा है।

साहीवाल प्रजाति की गायें ढाई साल की आयु में हो जाती हैं गर्भवती, देसी गायों को तीन से चार साल का वक्त लगता है- नस्ल संवर्धन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि उन्नत नस्लों की गायें जल्द ही गर्भवती हो जाती हैं। देसी गायें सामान्यतः तीन या चार साल में गर्भधारण करती हैं, जबकि साहीवाल और गिर प्रजाति की गाय ढाई साल में ही गर्भधारण कर सकती हैं।

]इसके साथ ही देसी प्रजाति की गायें जहाँ एक-दो लीटर दूध देती हैं वहीं गिर-साहीवाल प्रजाति की गायें पंद्रह-सोलह लीटर दूध देती हैं। बहुत अच्छा चारा खिलाएं तो यह 22 लीटर तक भी पहुँच जाता है। गाँव में दूध का उत्पादन बढ़ा है।

अतिरिक्त दूध की आपूर्ति रिसामा दूध संग्रहण केंद्र में की जाती है। इसके अलावा अंडा, ओटेबंद आदि के होटलों में भी सप्लाई मतवारी से हो रही है। गाँव के प्रगतिशील किसान श्री भैयालाल साहू के यहां 14 पशु हैं और सभी उन्नत नस्ल के हैं।

उन्नत नस्ल के 18 बछड़े भी विक्रय किये अंजोरा केंद्र को- नस्ल संवर्धन से होने वाले लाभ के संबंध में बताते हुए, श्री कामले ने बताया कि खुशी की बात यह है कि इस केंद्र से 18 बछड़े भी हुए जिन्हें साँड बनाने के लिए अंजोरा भेजा गया।

किसानों को इसके लिए भुगतान भी हुआ। इनके माध्यम से अन्य गौठानों में भी नस्ल संवर्धन का कार्य बढ़ेगा।
गौठान की वजह से बढ़ा कृत्रिम गर्भाधान का कार्य- गौठान में एक ही जगह पशुओं के इकट्ठा होने से काफी लाभ हुआ है। कृत्रिम गर्भाधान का काम तेजी से बढ़ा है।

एक ही जगह पर मवेशियों के इकट्ठा होने से इनके इलाज में भी आसानी हुई है। डॉ. सीपी मिश्रा ने बताया कि गौठानों में कैंप के लिए दिन निर्धारित किये गये हैं। इससे गोवंश के संवर्धन के कार्य में आसानी हो रही है।

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