किसी मृतक की पहली पत्नी से उसका कानूनी तलाक हुए बगैर उसकी दूसरी पत्नी को उसकी पेंशन का लाभार्थी नहीं माना जा सकता।
मुंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को यह फैसला सुनाते हुए एक याचिकाकर्ता की याचिका खारिज कर दी। सोलापुर निवासी शमल टाटे ने राज्य सरकार के निर्णय को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में अपने मृतक पति की पेंशन का लाभ पाने के लिए याचिका दायर की थी।
सोलापुर कलेक्टर कार्यालय में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी रहे उसके पति महादेव ने पहले से विवाहित रहते हुए उससे विवाह किया था।
महादेव की मृत्यु के बाद उसकी दोनों पत्नियों में समझौता हुआ कि महादेव की सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाला 90 फीसद लाभ पहली पत्नी लेगी, लेकिन उसकी पेंशन दूसरी पत्नी लेगी। पहली पत्नी के निधन तक यह समझौता चलता रहा, लेकिन पहली पत्नी का कैंसर से निधन होने के बाद महादेव की पेंशन का लाभ मिलना बंद हो गया।
उसने चार बार राज्य सरकार का दरवाजा खटखटाया, लेकिन सरकार ने उसे महादेव की पत्नी मानने से इन्कार कर दिया। जबकि शमल टाटे का कहना था कि महादेव से उसके तीन बच्चे हैं, और समाज में उसे महादेव की पत्नी ही माना जाता है।
2019 में उसके द्वारा दायर याचिका पर बुधवार को फैसला सुनाते हुए उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों जेएस कत्थावाला और मिलिंद जाधव की खंडपीठ ने राज्य सरकार के फैसले को ही उचित ठहराया।
उच्च न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसलों का हवाला देते हुए साफ कर दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत किसी व्यक्ति के पहली पत्नी के साथ उसके वैवाहिक संबंधों के कानूनन समाप्त न होने की स्थिति में उसके दूसरे विवाह को वैध नहीं माना जा सकता।
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में महादेव की पहली पत्नी के पेंशन पर दूसरी पत्नी के हक जताने को भी गलत ठहराया है।