नई दिल्ली : चीन ने पूर्वी लद्दाख सेक्टर की गलवान घाटी में भारत के साथ हुई झड़प (India-China Galwan Valley Clash) में घायल हुए अपने एक सैनिक को विंटर ओलिंपिक का टॉर्च-बियरर बनाया है। यानी उसे बीजिंग विंटर ओलिंपिक 2022 की मशाल थमाई है। गलवान की झड़प में जख्मी हुए पीएलए के रेजिमेंट कमांडर की फबाओ ने टॉर्च रिले में चीनी ऐथलीट वांग मेंग से विंटर ओलिंपिक की मशाल ली। पहली नजर में ये सामान्य लग सकता है।
सरहद की निगहबानी करने वाले एक सैनिक का सम्मान लग सकता है। लेकिन जिस चीन ने गलवान में मारे गए (India-China tension at LAC) अपने सैनिकों की सही संख्या तक नहीं कबूल की, वह जख्मी सैनिक का सम्मान क्या करेगा। उसका ये कदम भी भारत के खिलाफ प्रॉपगैंडा और साइकोलॉजिकल वॉरफेयर (China’s Psychological Warfare strategy against India) की कड़ी का हिस्सा है।
भारत के खिलाफ मनोवैज्ञानिक युद्ध में लगे चीन के लिए प्रॉपगैंडा बहुत बड़ा हथियार है। वह शुरू से भारत के खिलाफ मनोवैज्ञानिक युद्ध लड़ता रहा है लेकिन गलवान घाटी की झड़प के बाद उसका ये अभियान काफी तेज हो गया है। चीन सुन जू की ‘धोखे’ वाली फिलॉस्फी पर आगे बढ़ता रहा है जिसे चीनी इतिहास का सबसे चतुर सैन्य रणनीतिकार माना जाता है।
ईसा से भी 500 साल पहले पैदा हुए सुन जू ने कहा था, ‘जब हमला करने की क्षमता हो तब हमें ऐसे दिखाना चाहिए कि हमारे पास ये क्षमता है ही नहीं। जब हम अपनी फोर्स का इस्तेमाल कर रहे हों तो ये लगना चाहिए कि वो तो निष्क्रिय हैं। जब हम नजदीक में हों तो दुश्मन को ये यकीन होना चाहिए कि हम उनसे बहुत दूर हैं। जब हम दूर हों तो हमें दुश्मन में ये यकीन भरना चाहिए कि हम बहुत नजदीक हैं।’
दशकों के चीन की नीति प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ दुष्प्रचार के जरिए मनोवैज्ञानिक युद्ध छेड़ने की रही है। मकसद- प्रतिद्वंद्वी को बदनाम करना, उसके मनोबल को तोड़ना। यहां तक कि प्रतिद्वंद्वी देश के नागरिकों के बीच नफरत और अविश्वास फैलाने के लिए भी चीन अपनी प्रॉपगैंडा मशीनरी का इस्तेमाल करता आया है। 2020 की गलवान घाटी झड़प के बाद चीन की प्रॉपगैंडा मशीनरी लगातार भारत को निशाना बना रही है। एलएसी पर तनाव के बीच चीन भारत के खिलाफ मनोवैज्ञानिक युद्ध छेड़ रहा है। कभी एलएसी पर रोबोट सैनिकों की तैनाती का प्रॉपगैंडा कर रहा तो कभी गलवान घाटी में चीनी झंडे को फहराए जाने का दावा करता फर्जी वीडियो दिखा रहा।
जून 2020 में पूर्वी लद्दाख सेक्टर की गलवानी घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच खूनी झड़प हुई थी। उस झड़प में भारत के 20 सैनिक शहीद हुए थे जबकि चीन के 40 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे। जख्मी सैनिक को विंटर ओलिंपिक की मशाल थमा सम्मान का दिखावा करने वाले चीन ने अपने सैनिकों की मौत की असली संख्या भी दुनिया से छिपाई। उसने काफी बाद में कबूल किया कि उसके 5 सैनिक मारे गए थे। हालांकि, समय-समय पर उसके झूठ की पोल खुलती रही है। अभी एक दिन पहले ही 2 फरवरी को एक ऑस्ट्रेलियाई न्यूजपेपर ने खुलासा किया है कि गलवान में झड़प के दौरान चीन के कम से कम 38 सैनिक तो तेज बहती नदी की धारा में डूब गए थे।
गलवान घाटी में भारत-चीन के सैनिकों के बीच हुई खूनी झड़प के बाद से ही लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर दोनों देशों के बीच जबरदस्त तनाव है। पिछले दो साल से पूर्वी लद्दाख सेक्टर में हाड़ जमा देने वाली ठंड में भी दोनों देशों ने भारी सैन्य तैनाती जारी रखी है। भारतीय सैनिकों के पास ऊंचाई वाले दुर्गम और बेहद ठंड इलाकों में तैनाती के साथ-साथ युद्ध का भी अनुभव है लेकिन चीनी सैनिकों के लिए माइनस तापमान में एलएसी पर टिकना मुश्किल हो रहा।
पिछले साल तो सर्दी में उसे पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर तैनात अपने 90 प्रतिशत सैनिकों को बदलना पड़ा था। कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि भीषण ठंड से कई चीनी सैनिकों की मौत हो चुकी है लेकिन सच कबूलने के बजाय रोबोट सैनिकों का प्रॉपगैंडा चलाया। दावा किया कि एलएसी पर उसने रोबोट सैनिकों की तैनाती की है। लेकिन उसका ये दावा भी सच्चाई से बिल्कुल परे और उसके मनोवैज्ञानिक युद्ध का ही हिस्सा था।
चीन में आम लोगों के लिए ट्विटर पूरी तरह बैन है, उसी चीन में अधिकारी ट्विटर का इस्तेमाल करते हैं। कई कथित चीनी नागरिकों के अनवेरिफाइड ट्विटर हैंडल भी हैं। जाहिर है कि जब चीन में ट्विटर ही बैन है तो चीनियों के ट्विटर हैंडल के लिए टारगेट आडिएंस भी चीनी नागरिक नहीं है। इन ट्विटर हैंडलों का काम ही प्रतिद्वंद्वी देशों के खिलाफ झूठ और दुष्प्रचार फैलाना है। ये चीन के सरकारी मीडिया की तरह ही प्रॉपगैंडा मशीनरी का हिस्सा हैं।