असम की कमान अब हिमंत बिस्व सरमा संभालेंगे। सोमवार को हिमंत बिस्व सरमा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उनके साथ कई अन्य विधायकों ने भी मंत्री पद की शपथ ली है। इस सबके बीच बड़ा सवाल उठता है कि जब सर्वानंद सोनोवाल का कार्यकाल अच्छा चला और उनकी अगुवाई में पार्टी दूसरी बार सत्ता में आई, तो फिर भी पार्टी ने उनपर भरोसा नहीं जताकर सरमा पर दांव क्यों खेला?आखिर इसके पीछे कुछ तो वजह जरूर होगी। दरअसल, भाजपा की नजर 2024 लोकसभा चुनाव पर है। 2019 लोकसभा चुनाव में पूर्वोत्तर में हिमंत सरमा ने पार्टी का नेतृत्व किया था, जिसमें भाजपा और उसके सहयोगी दलों को बंपर फायदा हुआ। पार्टी पहली बार कांग्रेस के किले में सेंध लगाने में कामयाब हुई और पूर्वोत्तर में सबसे ज्यादा सांसद एनडीए के बने। इससे केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा सरमा पर और बढ़ गया। राजनीतिक कद और पद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी पकड़ केवल असम राज्य तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी उतने ही लोकप्रिय हैं। राज्यों के मुख्यमंत्री या नेताओं से उनके अच्छे संपर्क और संबंध हैं। यहां तक कि संगठनों में वो पदाधिकारियों हैं।
2014 में कांग्रेस का छोड़ा था दामन
2014 में तरुण गोगोई से मतभेद होने के बाद हिमंत सरमा ने कांग्रेस छोड़ दी थी। 2015 में सरमा ने भाजपा का दामन थामा लिया। दिल्ली में अमित शाह से मुलाकात के बाद सरमा पार्टी में शामिल हुए। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह पूर्वोत्तर में कमल खिलाने के लिए काम करने लगे। चाहे मणिपुर में एनडीए गठबंधन सरकार बनाने की बात हो या फिर त्रिपुरा में भगवा लहराने की चर्चा। सबका श्रेय सरमा को जाता है। इसका नतीजा यह हुआ कि 2016 में केंद्रीय नेतृत्व ने सरमा को नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस का संयोजक बना दिया। केंद्रीय नेतृत्व ने सरमा को राज्य की कमान सौंपने के पीछे दूरदर्शी सोच अपनाई है। 2024 लोकसभा में भाजपा पूर्वोत्तर में अपने दम पर कमल खिलाना चाहती है। फिलहाल हिमंत सरमा पांचवीं बार चुनाव जीतकर गुवाहाटी पहुंचे हैं। पार्टी ने 2021 विधानसभा चुनाव में सरमा को आगे रखकर चुनाव लड़ी और जीत हासिल की। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि आगमी लोकसभा चुनाव में नॉर्थ ईस्ट में एनडीए का नैया पार सरमा के सहारे होगी।