नई दिल्ली:-कौन कहता है बॉन्ड कालाधन है। बॉन्ड कालाधन नहीं है, क्योंकि यह कंपनी की बैलेंस शीट में रिफ्लेक्ट करता है। गोपनीयता तो तब होता है, जब कैश से चंदा लिया जाता है। कांग्रेस के लोग पार्टी के नाम से 11 सौ रुपये लेते थे और हजार रुपये घर में रख लेते थे। बॉन्ड में अगर 11 सौ का लेते हो, तो पूरा पार्टी में जमा होता है।
कोई मुझे ये समझा दे कि इलेक्टोरल बॉन्ड आने से पहले चंदा कैसे आता था.
–बॉन्ड से चंदा कैसे आता है, अपनी कंपनी के चेक आरबीआई को देकर एक बॉन्ड खरीदते हैं और राजनीति पार्टियों को देते हैं.
–इसमें गोपनीयता का सवाल आ गया है, मैं पूछना चाहता हूं कि जो कैश में चंदा आता था, उसमें किसका नाम सामने आया है.
–ये एक परसेप्शन चलाया जा रहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड से बीजेपी को बड़ा फायदा हुआ है, क्योंकि बीजेपी पावर में है.
–अभी राहुल गांधी ने बयान दिया है कि दुनिया की सबसे बड़ी उगाही का बड़ा जरिया इलेक्टोरल बॉन्ड है
–बीजेपी को करीब 6 हजार करोड़ के बॉन्ड मिले हैं. कुल बॉन्ड 20 हजार करोड़ के हैं तो 14 हजार के बॉन्ड कहां गए.
— टीएमसी को 1600 करोड़, कांग्रेस को 1400 करोड़, बीआरएस को 1200 करोड़, बीजेडी के 775 करोड़ और डीएमके को 639 करोड़ के बॉन्ड मिले.
— देश में हमारे 303 सांसद हैं हमारे 6 हजार करोड़ के बॉन्ड मिले हैं, 242 सांसद जिन पार्टियों के हैं, उन्हें 14 हजार करोड़ के बॉन्ड मिले हैं.
— मैं दावा करता हूं कि जब हिसाब किताब होगा तो ये लोग किसी को फेस नहीं कर पाएंगे.
–योजना लागू होने से पहले, पार्टियों को दान नकद के माध्यम से दिया जाता था। लेकिन योजना लागू होने के बाद कंपनियों या व्यक्तियों को पार्टियों को चंदा देने के लिए बांड खरीदने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक में एक चेक जमा करना पड़ता था।
ईडी-सीबीआई का केस चलने वाली कंपनियों से बॉन्ड लिए जाने के सवाल पर कहा कि क्या उन्होंने आजादी के बाद से अब तक चंदा नहीं दिया। करोड़ों का कैश लिया जिन्होंने कैश में, जिन्होंने12 लाख करोड़ के घपले-घोटाले किए, वे आज हिसाब पूछ रहे हैं। बॉन्ड आने से पहले चुनाव का खर्चा कहां से आता था? कैश से आता था।