41 साल…. बड़ा लंबा वक्त होता है। इतने में एक पूरी पीढ़ी जवान होकर बूढ़ी होने लगती है। भारतीय पुरुष हॉकी टीम के हर सदस्य को उस लम्हे का बेसब्री से इंतजार था जब वह ओलिंपिक में मेडल जीते। 41 साल की वह आस पूरी हो चुकी है। तोक्यो ओलिंपिक में फील्ड हॉकी का ब्रॉन्ज मेडल हमारा हुआ। लंबे इंतजार के बाद जब कुछ हासिल होता है तो उसकी खुशी अलग ही होती है।
टीम के हर सदस्य का चेहरा दमक रहा है… गर्व की लाली उन्हें किसी योद्धा सा रूप दे रही है। कुछ को यकीन नहीं हो रहा कि यह सच है या सपना।तस्वीरें आ रही हैं, तोक्यो में जश्न शुरू हो चुका है। यह बस इन खिलाड़ियों का जश्न भर नहीं है। उनके जोश के पीछे 130 करोड़ से ज्यादा भारतीयों की दहाड़ है।1980 मॉस्को ओलिंपिक में हमने आखिरी बार फील्ड हॉकी में कोई मेडल जीता था।
वहां से तोक्यो तक के सफर में टीम ने कई नाकामियां सही हैं। बीजिंग ओलिंपिक में लिए तो हम क्वालिफाई तक नहीं कर सके थे।इतिहास हमारे पक्ष में नहीं था, मगर लड़के जोश से लबरेज थे। रूपिंदर ने ही गोल करके भारत को आज मैच में लीड दिलाई।
पूरी टीम ने धमाकेदार खेल दिखाया। आज के मैच में सिमरनजीत सिंह ((17वें मिनट और 34वें मिनट) हार्दिक सिंह (27वां मिनट), हरमनप्रीत सिंह (29वां मिनट) और रूपिंदर पाल सिंह (31वां मिनट) ने गोल किया। मगर आखिरी वक्त में जिस तरह गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने जर्मन के हर हमले को कुंद कर दिया, वह फैन्स के जेहन में लंबे समय तक रहेगा। जीत के बाद सबसे ज्यादा मस्ती में श्रीजेश ही नजर आए।
भारतीय हॉकी टीम ने ओलिंपिक में अपने प्रदर्शन ने ना सिर्फ ब्रॉन्ज मेडल जीता है, बल्कि सबके दिल भी। न्यूजीलैंड के खिलाफ पहले मैच में जीत तो मिली मगर टीम ने 10 पेनाल्टी कॉर्नर दिए मगर पाए सिर्फ 5। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दूसरे ग्रुप मैच में 1-7 की करारी हार के बावजूद टीम ने हार नहीं मानी।
बाकी चारों ग्रुप मैच में जीत दर्ज की और दूसरे नंबर पर रही।भारतीय टीम 1980 मास्को ओलिंपिक में अपने आठ गोल्ड मेडल्स में आखिरी मेडल जीतने के 41 साल बाद कोई ओलिंपिक मेडल जीती है।
तोक्यो ओलिंपिक में यह भारत का चौथा मेडल है। इससे पहले वेटलिफ्टिंग में मीराबाई चानू ने सिल्वर, बैडमिंटन में पीवी सिंधू और मुक्केबाजी में लवलीना बोरगोहेन ने ब्रॉन्ज मेडल जीता है।