



देहरादून: ऋषिकेश के रानीपोखरी इलाके का एक घर, जहां हर घर की तरह सामान्य सुबह है। नीतू देवी जिनकी उम्र 36 साल है, किचन में अपने परिवार के लिए नाश्ता तैयार कर रहीं हैं। उनके साथ उनकी एक बेटी स्वर्णा भी किचन में ही है। स्वर्णा दिव्यांग है इसलिए मां हर वक्त अपनी प्यारी बेटी को अपने साथ रखती है। बाहर ड्राइंग रूम में नीतू की दो और बेटियां अपर्णा जो तेरह साल की है और अन्नपूर्णा जिसकी उम्र ग्यारह साल है, स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही हैं । वहीं पास ही उनके साथ उनकी दादी भी बैठी है। इन बच्चियों के पिता महेश तिवारी अंदर कमरे में पूजा कर रहे हैं। सबकुछ बेहद सामान्य है।
नीतू देवी किचन से ही किसी बात को लेकर अपने पति महेश कुमार तिवारी को आवाज़ देती हैं। महेश पूजा करने में इतना रमा होता है कि वो अपनी पत्नी की आवाज़ नहीं सुनता। लेकिन नीतू फिर से महेश को आवाज़ देती है क्योंकि उन्हें किचन में सिलेंडर को लेकर कुछ समस्या आती है। बार-बार बुलाने पर आखिरकार महेश पूजा के कमरे से बाहर आता है। नीतू महेश को बताती है कि सिलेंडर में कुछ समस्या आ रही है। दोनों की बातें होती है। स्वर्णा यानी उनकी छोड़ी बेटी उनकी बात सुन रही होती है लेकिन बात करते करते महेश आग बबूला हो जाता है। वो पास ही पड़े सब्जी काटने वाले चाकू को उठ लेता है और नीतू को मारने की कोशिश करता है। नीतू खुद को बचाने के लिए किचन से बाहर कमरे की तरफ भागती है, महेश उसके पीछे-पीछे आता है और फिर चाकू से उसपर वार कर देता है। मां को खून से लथपथ देख बच्चे घबरा जाते हैं। “बचाओ,बचाओ…हमारी मां को मत मारो…हमारी मां को बचा लो”… बच्चों की इन चीख पुकार से पूरा घर गूंजने लगता है।
पास में रहने वाले सुबोध जायसवाल के कानों में बच्चों की ये आवाज़ पड़ती है। सुबोध तुरंत महेश के घर की तरफ भागते हैं। महेश के घर के सारे खिड़की दरवाज़े बंद हैं। सुबोध सिर्फ शीशे से घर के अंदर का हाल देखते हैं तो घबरा जाते हैं। महेश नीतू के अलावा अपनी बड़ी बेटी अपर्णा को भी चाकू घोपकर मार चुका होता है। पास ही स्कूल की ड्रेस पहने अन्नपूर्णा डरी सहमी खड़ी दिखती है। सुबोध के सामने ही महेश अपनी नौ साल की बेटी अन्नपूर्णा को भी ज़मीन पर गिरा देता है और उसकी तरफ हमला करने के लिए दौड़ता है। बच्ची रोती है, घबराती है लेकिन महेश उसकी तरफ बढता जाता है। सुबोध महेश से बेटी को ना मारने की गुहार करता है लेकिन महेश के सिर पर तो जैसे भूत सवार होता है। उसे न ही सुबोध के शब्द सुनाई देते हैं और न ही अपनी मासूम बेटी का रोता बिलखता चेहरा दिखता है। उसका मकसद सिर्फ और सिर्फ अन्नपूर्णा को भी नीतू और अपर्णा की तरह मौत की नींद सुलाने का होता है।
इसी बीच सुबोध पुलिस को फोन करता है और आसपास के बाकी लोग भी महेश के घर के बाहर इकट्ठा हो जाते हैं।इस पूरे वारदात को पास ही बैठी महेश की बूढ़ी मां भी देख रही होती हैं। डर और घबराहट के मारे उनके चेहरे का रंग उड़ जाता है लेकिन तभी उन्हें ध्यान आता है अपनी पोती स्वर्णा का, जो किचन में नीतू के साथ थी। वो अपनी पोती के पास किचन में चली जाती हैं। इसी दौरान बाहर पुलिस और भीड़ इकट्ठा हो जाती है। अंदर जो भी इस खौफनाक मंजर को देखता है वो सन्न रह जाता है। पुलिस दरवाज़ा तोड़कर घर के अंदर घुसती है लेकिन तब तक महेश अपनी मां और दिव्यांग बेटी को भी मौत के घाट उतार चुका होता है। चंद मिनटों पहले जो परिवार हंसता खेलता अपने दिन की तैयारी कर रहा था, वो शांत खून के ढेर में लथपठ पड़ा होता है।अपने ही परिवार के इस कातिल को देखकर लोगों को डर लगने लगता है। पास ही वो चाकू पड़ा होता है जिससे महेश ने हैवानियत के साथ अपने ही परिवार, अपने ही खून को मौत की नींद सुला दिया । पुलिस हत्यारे को गिरफ्तार कर लेती है, खून से सने चाकू को उठाया जाता है। ये सब देख रहे पड़ोसी कुछ समझ नहीं पाते कि ऐसा क्यों और कैसे हो गया। कोई इंसान आखिर क्यों अपने ही परिवार का दुश्मन बन गया? जितना बड़ा जुर्म, सवालों की फेहरिस्त भी उतनी ही लंबी।पड़ोसियों से बात करने पर कई तरह की कहानियां सामने आ रही हैं। महेश पिछले कुछ महीनों से अचानक बहुत ज्यादा पूजा-पाठ करने लगा था। वो अक्सर अपने पूजा वाले कमरे में ही रहता था। यहां तक की अगर कोई उससे मिलने आता तो भी वो उससे नहीं मिलता था। महेश की पत्नी नीतू अक्सर लोगों को बताती थी कि वो पूजा कर रहे हैं। कभी कभार ही महेश को घर से बाहर देखा जाता था। एसे में सवाल तो उठने ही हैं।
वारदात के दिन भी महेश पूजा वाले कमरे में ही था। और इसी बात से नाराज़ हो गया था कि उसे आधी पूजा से क्यों उठाया गया। तो क्या महेश की पूजा पाठ ही इस परिवार का काल बन गई?पहले कुछ दिनों तक वो इस वजह से परेशान रहता था कि उसके परिवार का खर्चा कैसे चलेगा? उसका एक भाई ही घर चलाने में उसकी आर्थिक मदद कर रहा था। लेकिन कुछ महीनों में अचानक महेश की आदतों में बदलाव आए थे और उसका ध्यान सिर्फ पूजा में ही लगा रहता था।चंद मिनटों में रानीपोखर के इस घर की दशा ही बदल गई। महेश की एक बेटी और भी है जो थोड़ी दूर ऋषिकेश में ही रह रहे अपने चाचा के घर गई हुई थी और इसलिए वो अपने पिता के इस कहर से बच गई। महेश अपनी इस बेटी का कत्ल तो नहीं कर पाया लेकिन उसे अनाथ ज़रूर बना गया। भरा पूरा परिवार जिसे छोड़कर हंसी खुशी वो अपने रिश्तेदार के घर गई थी, अब वो परिवार खत्म हो चुका था। बचा था तो बस ज़िंदगी भर का अकेलापन, दुख दर्द।