तीसरी लहर के दौरान पहली बार एक दिन में 15 मरीजों की मौत से मचे हड़कंप के बीच बदलाव शुरू हो गए हैं। राज्य सरकार ने स्वास्थ्य विभाग का प्रमुख सचिव बदल दिया है। डॉ. आलोक शुक्ला की जगह पर डॉ. मनिंदर कौर द्विवेदी अब स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी संभालेंगी। इस बीच कोरोना से हुई मौतों की पड़ताल शुरू हुई है। विभाग ने कोरोना से मरने वालों में किसी नए वैरिएंट की आशंका को देखते हुए जांच कराने का फैसला किया है।
कोरोना संक्रमित व्यक्तियों को उनके स्वस्थ होने के तीन महीने बाद कोरोना से बचाव का टीका लगाया जाएगा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने नई गाइडलाइन जारी की है। यह गाइडलाइन स्वास्थ्य कर्मियों, फ्रंटलाइन वर्कर्स और 60 वर्ष से अधिक के लोगों को लगाए जा रहे प्रिकॉशन डोज के साथ ही सभी आयु वर्ग के टीकाकरण के लिए प्रभावी होगा।
बताया जा रहा है, कोरोना से मरने वालों के नमूनों में से रैंडमली 5% को जीनोम सीक्वेसिंग के लिए भुवनेश्वर भेजा जाएगा। इसके जरिए यह जानने की कोशिश हो रही है कि कोई वैरिएंट कितना घातक है। सामान्य रूप से हो रही जांच में से 5% सैंपल जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए पहले भी भेजे जा रहे हैं। अभी तक करीब सवा चार हजार नमूने भुवनेश्वर भेजे जा चुके हैं।
इसमें प्रमुख रूप से डेल्टा, बी-1, बी-617, बी-671.2, बी-1617.2, काप्पा, यूके और ओमिक्रॉन वैरिएंट शामिल हैं। तीसरी लहर के लिए जिम्मेदार बताए जा रहे ओमिक्रॉन वैरिएंट के 21 मामलों की पुष्टि हो चुकी है, लेकिन ये सभी लोग पूरी तरह ठीक हो चुके हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि जीनोम सीक्वेंसिंग के नतीजों से यह पता चलेगा कि कौन सा वैरिएंट अधिक मौत की वजह बन रहा है। यहीं नहीं मरीज को संक्रमण की वजह से हुई दिक्कतों और मौत के कारणों को समझने में भी आसानी होगी। प्रदेश में अब तक 13 हजार 705 मरीजों की जान इस महामारी की वजह से जा चुकी है।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक कोरोना की वजह से जो मौतें हुई हैं, उनमें अधिकतर लोग दूसरी बीमारियों के शिकार रहे हैं। गंभीर रूप से बीमार होने से पहले उनको कोरोना भी हुआ। मृतकों में कई दुर्घटना के शिकार लोग भी हैं। डेथ ऑडिट से इनकी संख्या 65% से अधिक पाई गई है। 46 से 60 साल आयु वर्ग के लोगों की सबसे अधिक मौत कोरोना की वजह से हुई है।
घातक हो जाने में टीका नहीं लगवाना भी एक बड़ी वजह हो सकती है। तीसरी लहर के दौरान हुई मौतों के विश्लेषण से साफ हुआ है कि मरने वालों में से करीब 56% लोगों ने कोई टीका ही नहीं लगवाया था। 25% लोग दोनों डोज लगवा चुके थे, वहीं 18% ने केवल एक टीका लगवाया था। डॉक्टरों का कहना है, टीकाकरण की वजह से संक्रमण एकदम से 100% बचाव तो नहीं हुआ। लेकिन इससे मरने के चांस कम हो गए हैं।