भारत में जल्द ही अब 18 साल से कम उम्र के बच्चों को भी कोरोना की वैक्सीन लगनी शुरू हो सकती है। जायडस कैडिला ने ट्रायल से संबंधित डेटा ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया यानी डीसीजीआई के पास भेज दिया है। अब डीसीजीआई इसके आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी पर फैसला लेगी। अगर इस वैक्सीन को मंजूरी मिल जाती है तो यह भारत में इस्तेमाल होने वाली चौथी वैक्सीन होगी। फिलहाल देश में जिन तीन वैक्सीन का इस्तेमाल हो रहा है, उनमें कोविशील्ड, कोवाक्सिन और स्पूतनिक-वी शामिल हैं। सबसे पहले कोविशील्ड और कोवाक्सिन को मंजूरी मिली थी। ऐसे में आइए एक बार फिर विशेषज्ञ से जानते हैं कि इन दोनों में से कौन सी कोरोना वैक्सीन सबसे बेहतर है, इन दोनों में अंतर क्या है, इनकी प्रभावकारिता क्या है और इनके साइड-इफेक्ट्स क्या-क्या हैं?
कोविशील्ड वैक्सीन की क्या खासियत है?
इस वैक्सीन का विकास चिंपाजी में सर्दी पैदा करने वाले सामान्य वायरस (एडेनोवायरस) के कमजोर संस्करण से किया गया है। हालांकि जब शरीर में इंजेक्शन के जरिये डाला जाता है तो यह बीमारी पैदा नहीं करता, बल्कि प्रतिरक्षा तंत्र को कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने के लिए प्रेरित करता है।
कोविशील्ड और कोवाक्सिन की प्रभावकारिता क्या हैं?
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के मुताबिक, कोविशील्ड की प्रभावकारिता 70 फीसदी है, जिसे दूसरी डोज लेने के साथ 90 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है। वहीं, कोवैक्सीन की प्रभावकारिता कोविशील्ड से थोड़ी ज्यादा यानी 78 फीसदी है। कोरोना के नए वैरिएंट्स पर भी इन दोनों वैक्सीन को प्रभावी बताया गया है।
जून महीने में मेडरिक्सिव नामक प्री-प्रिंट पत्रिका में एक स्टडी प्रकाशित हुई थी, जिसमें दावा किया गया था कि कोवाक्सिन का टीका लेने वाले लोगों की तुलना में कोविशील्ड का टीका लेने वालों में एंटीबॉडी का स्तर अधिक था।
दो समूहों में बांटे गए कुल 515 स्वास्थ्य कर्मचारियों पर किए गए अध्ययन के दौरान यह पाया गया था कि दोनों ही समूह में 95 फीसदी तक कर्मचारियों में एंटीबॉडी विकसित हुईं और कोविशील्ड लेने वालों में यह दर 98 और कोवाक्सिन लेने वालों में 80 फीसदी थी। विशेषज्ञ कहते हैं कि भले ही इन दोनों वैक्सीन से एंटीबॉडी बनने का स्तर अलग-अलग हो, लेकिन दोनों ही प्रभावी वैक्सीन हैं।