देश में लड़कियों के लिए विवाह की उम्र को 18 साल के बढ़ाकर 21 किया जा रहा है. इस प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी भी दे दी है. इसके लिए सरकार मौजूदा कानूनों में संशोधन करेगी. देश में पहले के कानून के अनुसार अभी पुरुषों की विवाह की न्यूनतम उम्र 21 और महिलाओं की 18 साल है.
नए प्रस्ताव के मंजूर होने के बाद अब सरकार बाल विवाह निषेध कानून, स्पेशल मैरिज एक्ट और हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधन करेगी. नीति आयोग में जया जेटली की अध्यक्षता में साल 2020 में बने टास्क फोर्स ने इसकी सिफारिश की थी.
इस टास्कफोर्स को “मातृत्व की आयु से संबंधित मामलों, एमएमआर (मातृ मृत्यु दर) को कम करने, पोषण स्तर में सुधार और संबंधित मुद्दों” की जांच करने के लिए गठित किया गया था. टास्क फ़ोर्स का कहना है कि पहले बच्चे का जन्म देते समय उम्र 21 वर्ष होनी चाहिए.
विवाह में देरी का परिवारों, महिलाओं, बच्चों और समाज के आर्थिक,सामाजिक और स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. बता दें कि 1929 के तत्कालीन शारदा अधिनियम में संशोधन करके 1978 में महिलाओं की शादी की उम्र 15 साल से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई थी. अब 43 साल बाद यह अहम बदलाव होने जा रहा है.
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 (iii) शादी के लिए लड़की की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़के के लिए 21 वर्ष निर्धारित करती है. विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 भी क्रमशः महिलाओं और पुरुषों के लिए विवाह के लिए सहमति की न्यूनतम आयु के रूप में 18 और 21 वर्ष निर्धारित करतेहैं. लेकिन भारत में बाल विवाह को रोकने के लिए शादी की उम्र में कई बार बदलाव किए गए.
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2020-21 के अपने बजट भाषण के दौरान टास्क फोर्स के गठन का जिक्र करते हुए कहा था, “1929 के तत्कालीन शारदा अधिनियम में संशोधन करके 1978 में महिलाओं की शादी की उम्र 15 साल से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई थी. जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ता है, महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा और करियर बनाने के अवसर खुल रहे हैं. एमएमआर को कम करने के साथ-साथ पोषण स्तर में सुधार की अनिवार्यता है. एक लड़की के मातृत्व में प्रवेश करने की उम्र के पूरे मुद्दे को इसी रोशनी में देखने की जरूरत है.”