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तीज पर करें शिव-पार्वती आराधना, जानें पूजा की सही विधि, मुहूर्त एवं मंत्र

शास्त्र में भाद्रपद (भादों) शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को महिलाएं परिवार एवं पति की समुन्नति एवं आरोग्यता के लिए हरितालिका तीज का अखण्ड निर्जल व्रत रखती हैं। यह व्रत-पर्व इस वर्ष 09 सितंबर दिन गुरुवार को पड़ रहा है। तृतीया तिथि बुधवार की रात्रि (भोर में) 03:59 बजे लग रही है, जो गुरुवार 09 सितंबर की रात्रि 02:14 बजे तक रहेगी।

उसके बाद चतुर्थी लग जाएगी। हस्त नक्षत्र में चतुर्थी युक्त तृतीया तिथि वैधव्य दोष नाशक, पारिवारिक समृद्धि एवं सन्तान सुख को प्रदान करने वाली होती है-ऐसी शास्त्रीय मान्यता है। ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट से जानते हैं हरितालिका तीज व्रत पर बनने वाले दुर्लभ संयोग, पूजा मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र, आरती आदि के बारे में।

देवी पार्वती की घनघोर तपस्या से उत्पन्न यह पर्व भगवान शिव को प्रसन्न करने का उत्तम पर्व है। 14 वर्ष बाद इस वर्ष रवि योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र में रवि योग को अत्यन्त प्रभावशाली माना गया है।

योग प्रकरण में उल्लिखित है कि इस योग में अनेक अशुभ योगों के प्रभाव को सर्वथा समाप्त करने की अद्वितीय क्षमता है। अतः इस शुभ योग में पारिवारिक जीवन को सुखी-समृद्ध बनाने के लिए अखण्ड निर्जल व्रत करते हुए शिव-पार्वती के विधिवत पूजन का अति महत्व है।

व्रत पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 06:10 बजे से रात्रि 07:54 बजे तक सर्वार्थ सौभाग्य वृद्धि मुहूर्त है। शाम 05:14 बजे से सभी प्रकार के कष्ट-संकट एवं समस्त दोषों को समाप्त करने वाले रवि योग का दुर्लभ संयोग प्रारम्भ होगा। इस व्रत के प्रभाव से कुण्डली में होने वाले मांगलिक या कालसर्प जैसे अनेक दोषों का शिव-पार्वती की कृपा से स्वतः नाश हो जाता है।

सर्वप्रथम शिव की बालुका पार्थिव लिंग (प्रतिमा) बनाकर पार्वती जी के साथ सजे-सजाए मण्डप में स्थापित कर श्रृंगारपूर्वक धूप, दीप, पुष्प, स्नान-ध्यान नैवेद्य के साथ पंचोपचार पूजन कर कथा का श्रवण करना चाहिए। साथ ही ऋतुफल, मिष्ठान्न एवं सौभाग्य की सामग्री का यथा शक्ति दान करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। पार्वती जी को पीला सिन्दूर चढ़ाना चाहिए। दूसरे दिन प्रातः पूजित मूर्ति का विसर्जन कर पारण करना उत्तम होता है।

इस व्रत को निर्जल रहक़र अखण्ड व्रत करने वालों को जन्म जन्मान्तर तक वैधव्य दोष नहीं होता, बल्कि सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है। शिव पार्थिव का पूजन चन्दन, इत्र, जल, दूध, दही, घी, शहद, चीनी से करने के बाद बेलपत्र मदार-धतूरे का फूल चढ़ाना अति लाभकारी होता है।

इस व्रत को निर्जल रहक़र अखण्ड व्रत करने वालों को जन्म जन्मान्तर तक वैधव्य दोष नहीं होता, बल्कि सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है। शिव पार्थिव का पूजन चन्दन, इत्र, जल, दूध, दही, घी, शहद, चीनी से करने के बाद बेलपत्र मदार-धतूरे का फूल चढ़ाना अति लाभकारी होता है।

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