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सीओपीडी (क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) के खतरे से जूझ रहे मरीजों के लिए खेरा डाबर स्थित चौ. ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेदिक संस्थान सस्ती व आसानी से उपलब्ध इलाज पद्धति का इजात किया है। अस्पताल के कायाचिकित्सा विभाग के स्नातकोत्तर विभाग के विद्यार्थी की एक रिसर्च में सामने आया है कि 36 दिन तक गुड व अदरक के मिश्रण की तय मात्रा का नियमित रूप से सेवन करने पर सीओपीडी के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
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असल में सीओपीडी काे जड़ से खत्म करने के लिए अभी तक कोई इलाज पद्धति विकसित नहीं हुई है। रिसर्च से जुड़ी छात्रा डा. दृश्या दिनेश ने बताया कि ग्रुप-बी के 15 सीओपीडी मरीजों ने पहले दिन छह ग्राम गुड व छह ग्राम अदरक के मिश्रण का खाना खाने से पहले 100 मिलीलीटर गर्म दूध के साथ सेवन किया। प्रत्येक दिन छह-छह ग्राम गुड व अदरक और 50 मिलीलीटर दूध की मात्रा में अगले 12 दिन के बाद नियमित रूप से इजाफा किया गया। 12वें दिन मरीज ने 72 ग्राम अदरक व 72 ग्राम गुड और 650 मिलीलीटर दूध की मात्रा का सेवन किया।
13वें दिन से अगले 12 दिन तक इस मात्रा को बनाए रखा। 25वें दिन से मात्रा को घटाना शुरू किया। यानि छह ग्राम गुड व छह ग्राम अदरक और 50 मिलीलीटर दूध की मात्रा को अगले 12 दिन तक नियमित रूप से कम किया गया। 36वें दिन मरीज के डोज की मात्रा पहले दिन के बराबर पर पहुंच गई।
ऐसे में दवाओं के माध्यम से उसके दुष्प्रभावों को कम करने का प्रयास किया जाता है। बढ़ते प्रदूषण स्तर के कारण बीते कुछ सालों में पुरुषों के साथ महिलाओं में भी सीओपीडी का खतरा बढ़ा है और मरीजों की संख्या भी साल दर साल तेजी से बढ़ रही है। डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के मुताबिक सीओपीडी विश्व में मृत्यु का चौथा बड़ा कारण है। विशेषकर गरीब व माध्यम वर्गीय देशों में सीओपीडी का खतरा सबसे अधिक देखा गया है। उस पर से कोरोना महामारी ने सीओपीडी का खतरा और अधिक बढ़ा दिया है।सीओपीडी अस्थमा से कहीं ज्यादा गंभीर बीमारी है।
क्या है सीओपीडी रोग
अस्थमा व सीओपीडी इन दोनों के ही लक्षण समान हैं। जैसे खांसी, कफ और सांस लेने में दिक्कत आदि। पर ये दोनों ही रोग एक दूसरे से काफी अलग हैं। सीओपीडी रोग में मरीज को सांस लेने में काफी दिक्कत आती है। जिसके कारण आक्सीजन उनके शरीर में पूरी तरह नहीं पहुंच पाती है। गहरी सांस लेना, सांस लेने के लिए सीने की मांसपेशियों और गर्दन का प्रयोग करना, कफ, खांसी, जुकाम, सीने में जकड़न, वज़न कम होना, दिल से जुड़ी समस्याएं, फेफड़ों का कैंसर आदि लक्षण प्रमुख है।रोग का एक सबसे बड़ा कारण है प्रदूषण।
गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ और उनसे निकलने वाली जहरीली गैस हमारे फेफड़ों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है। गांव व कस्बों में लकड़ी और उपलों से चूल्हा जलाकर खाना पकाया जाता है, ये धुंआ भी उतना ही हानिकारक होता है। इसके अलावा धूल-मिट्टी, धूमपान सीओपीडी के खतरे को बढ़ा देता है।
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