



अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के मौके पर जयपुर टाइगर फेस्टिवल के तत्वावधान में टाइगर फोटोग्राफ एग्जिबिशन का आयोजन किया जा रहा है। कोरोना के प्रकोप के बाद पहली बार राजस्थान में जमीनी स्तर पर बाघों से लेकर जंगल तक जागरूकता को बेहतर बनाने के लिए यह आयोजन किया जा रहा है। यह तीन दिवसीय प्रदर्शनी जयपुर के जवाहर कला केंद्र में 29 जुलाई से 31 जुलाई तक चलेगी। इस आयोजन में देशभर के वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर्स द्वारा ली गईं 100 से अधिक तस्वीरें प्रदर्शित की जा रही हैं।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने देश के अपने बहुभाषी माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म, कू ऐप के अपने हैंडल के माध्यम से जानकारी देते हुए कहा कि आज से वन विभाग, राजस्थान सरकार के सहयोग से जयपुर टाइगर फेस्टिवल द्वारा जवाहर कला केन्द्र, जयपुर में तीन दिवसीय बाघ फोटो प्रदर्शनी आयोजित की जा रही है। इसमें देशभर के वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर्स द्वारा ली गईं 100 से अधिक तस्वीरें प्रदर्शित हो रही हैं। आप यहाँ जाकर ऐसी और सुंदर तस्वीरों को निहार कर हमारे राष्ट्रीय पशु बाघ को करीब से जान सकते हैं।
राजस्थान के चार टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या 100 से अधिक हो गई है। यह 1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा बाघ संरक्षण के लिए शुरू किए गए ‘टाइगर प्रोजेक्ट’ की सफलता का प्रमाण है।
सूत्रों की मानें, तो प्रदर्शनी में देश-विदेश के बाघ प्रेमियों के अलावा स्टूडेंट्स से लेकर युवा वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर्स द्वारा बाघों के विभिन्न एंगल के फोटो भिजवाए गए हैं। प्रदर्शनी में कुल 149 फोटोग्राफर्स की प्रविष्टियाँ आई थीं। इसके चयन के लिए एक विशेष चयन समिति का गठन किया गया। चयन समिति द्वारा करीब 100 से ज्यादा फोटो को प्रदर्शित करने योग्य माना गया है, जिन्हें प्रदर्शनी में डिस्प्ले किए जाने योग्य माना गया है।
बताया जा रहा है कि प्रथम विजेता को 51 हजार रुपये, द्वितीय विजेता को 31 हजार रुपये और तृतीय विजेता को 21 हजार रुपये का नगद पुरस्कार दिया जाएगा। इसी के साथ विभिन्न वर्गों में 5100 रुपये के 10 सांत्वना पुरस्कार भी दिए जाएँगे।
बाघ, वन्यजीव, जंगल, मानव, पर्यावरण, पानी, हवा आदि एक चक्र है और किसी भी एक चक्र को नुकसान होता है, तो यह मनुष्य के लिए हानिकारक साबित होता है। इसके दूरगामी विपरीत परिणाम भी मनुष्य को ही भुगतने पड़ेंगे। इस आयोजन का उद्देश्य बाघ, वन्यजीव और वनों को संरक्षित करने पर आधारित है। बाघ जंगल के सबसे मजबूत जानवरों में से एक है और यह प्राणी पूरे इकोलॉजिकल बैलेंस को मेंटेन करता है।
आयोजन का उद्देश्य इस बात से अवगत कराना है कि हमें उनकी महत्ता को समझना ही होगा। हमें जंगल में जाने के तौर-तरीके सीखने होंगे। जंगल बाघ का घर है। जंगल है, तो पर्यावरण है और पर्यावरण है, तो मानव है। बाघों की संख्या हमारे देश में जहाँ लाखों में थी, अब महज कुछ हजार रह गई है। आमजन को इसके प्रति जागरूक होने की जरूरत है। निश्चित तौर पर ऐसे आयोजन देश में बाघों के प्रति जागरूकता के साथ-साथ बाघों और इंसानों के बीच होने वाले संघर्ष की घटनाओं को रोकने में मददगार होंगे।