रायपुर। कई दशकों से दूसरे राज्यों से आकर यहां रह रहे लोगों को कैबिनेट ने बड़ी राहत दी है। बुधवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में निर्णय लिया गया कि ऐसे आवेदक जिनके माता-पिता छत्तीसगढ़ राज्य का स्थानीय निवासी प्रमाण पत्र प्राप्त करने की पात्रता रखते हैं और राज्य से बाहर अन्य राज्यों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं अथवा प्राप्त किए हैं, उन्हें भी राज्य का स्थानीय निवासी प्रमाण पत्र दिया जाएगा।
सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य है। यह निश्चित रूप से उनलोगों को राहत देगा, जो लंबे समय से शिक्षा, रोजगार या अन्य कारणों से राज्य में रह रहे हैं। इसके बावजूद उन्हें स्थानीय निवासी होने का प्रमाण पत्र नहीं जारी किया जाता था। इसके कारण वे राज्य की योजना के लाभसे भी वंचित थे।
एक नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ था। उससे भी पहले से हजारों की संख्या में अन्य राज्यों के लोग यहां आकर रह रहे थे। कालांतर में उन्होंने यहां घर मकान तक बनाए और खुद को छत्तीसगढ़िया होने पर गर्व महसूस करने लगे।
ये लोग उस समय यहां आए थे, जब राज्य बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव था। वे लंबे समय तक रहकर या शिक्षा ग्रहण करने के साथ नौकरी और रोजगार करते रहे। वे राज्य की अर्थव्यवस्था में मददगार रहे हैं।
वे अपने मूल राज्य में भी उनकी पहचान छत्तीसगढ़िया के रूप में होती रही। राज्यों का गठन मात्र प्रशासनिक व्यवस्था की दृष्टि से किया जाता है। इसी तरह स्थायी निवासी होने का प्रविधान व्यवस्थागत मामला है। देश में कोई भी किसी राज्य का निवासी हो उसकी नागरिकता भारतीयता ही होगी।
दशकों की मांग अब जाकर पूरी हुई है। सरकार का भी कर्तव्य है कि वह इस बात को देखे कि जो लोग राज्य की व्यवस्था और अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं, उन्हें यहां का स्थानीय निवासी होने का अधिकार मिलना चाहिए।
लंबे समय से अन्य राज्यों से आकर स्थायी निवासी बने लोगों और राज्य से बाहर अन्य राज्यों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं या प्राप्त किए हैं, उन्हें भी स्थानीय निवासी प्रमाण पत्र देने के फैसलेसे आशा की जानी चाहिए अब उनको भी राज्य की योजना का भी लाभ मिलेगा।