



राजस्थान: राजसमंद जिले के नाथद्वारा कस्बे में स्थित वल्लभ सम्प्रदाय की प्रधानपीठ श्रीनाथजी के मंदिर में अन्नकूट लूट की अनोखी परंपरा है। यहां आने वाले आदिवासी भक्त भोग में लगे अन्नकूट को लूटकर ले जाते हैं।
आमतौर पर दीपावली के अगले दिन भगवान श्रीनाथजी को साठ प्रकार के व्यंजनों से तैयार अन्नकूट का भोग लगाया जाता है, किंतु इस बार सूर्यग्रहण के चलते यह समारोह अब गोपाष्टमी यानी दीपावली के आठ दिन बाद मनाया जाएगा।
अन्नकूट महोत्सव में मेवाड़ के हजारों आदिवासी भगवान श्रीनाथजी के दर्शन करने पहुंचते हैं। सैकड़ों साल से जारी परंपरा के अनुसार वह अन्नकूट लूटकर ले जाते हैं।
इनमें मुख्यतया नाथद्वारा के आसपास के गांवों के अलावा कुंभलगढ़, उदयपुर जिले के गोगुन्दा और राजसमंद क्षेत्र से आदिवासी स्त्री पुरुष शामिल होते है। जिस दिन अन्नकूट का भोग लगता है, उस दिन वह दोपहर में ही मंदिर पहुंचने लग जाते हैं।
अन्नकूट में लगभग 20 क्विंटल पकाए हुए चावल के ढ़ेर का पर्वत डोल तिबारी के बाहर बना कर सजाया जाता है। जिसका भगवान श्रीनाथजी को भोग लगाया जाता है। चावल के अलावा अन्नकूट में श्रीखंड, हलवा (शीरा), बड़ा, पापड़, विभिन्न प्रकार के लड्डू, मोहनथाल, बर्फी, सागर, ठोर, खाजा, पकौड़े, खिचड़ी सहित लगभग 60 प्रकार के व्यंजन तैयार किए जाते हैं।
श्रीनाथजी के अन्नकूट के दर्शन में भारी संख्या में भीड़ जमा होती है। अन्नकूट के दर्शन के लिए राजस्थान के विभिन्न हिस्सों के अलावा गुजरात, मुंबई एवं मध्यप्रदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु दो तीन दिन पूर्व ही श्रीनाथजी की नगरी में आ जाते हैं। आम लोगों के लिए अन्नकूट के दर्शन रात्रि में लगभग 10 बजे खुलते हैं और 12 बजे तक चलते हैं। इसके बाद लोगों को बाहर निकाल कर मंदिर के द्वार केवल आदिवासियों के लिए खोल दिए जाते हैं।
बाहर उपस्थित आदिवासी स्त्रियों को वो प्रसाद थमाकर वे पुनः अन्नकूट लूटने के लिए मंदिर में प्रवेश कर जाते हैं।
अन्नकूट लूट की परंपरा अनोखी ही नहीं, बल्कि अविस्मरणीय और अद्भुत होती है। अन्नकूट के प्रसाद में बनाया जाने वाला चावल का ढ़ेर अत्यंत गर्म होता है लेकिन आदिवासी भक्त उसकी परवाह किए बिना इस पर टूट पड़ते हैं और अपने हाथों से झोली में भरते हैं। भक्ति भावना से पूर्ण ये आदिवासी इस प्रसाद को पाने के लिए अत्यंत व्यग्र रहते हैं।
गुजराती भक्तों व स्थानीय लोगों के लिए भी इस चावल का अत्यंत महत्व है। वे आदिवासियों से अन्नकूट के थोड़े से चावल लेकर इन्हें सुखाकर अपने घर में तिजोरी में रखते हैं। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर मृतक के मुंह में गंगाजल के अलावा इन चावल को भी रखने की परंपरा है।