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खैरागढ़ में कांग्रेस की जीत

राजनांदगांव जैसा की तय था कि कांग्रेस अपना चौथा उपचुनाव भी जीत जाएगी, जीत गई। इससे पहले कांग्रेस ने दंतेवाड़ा, चित्रकोट, मरवाही के उपचुनाव जीत लिए थे। इन तीनों जीत का अपना महत्व तो था, लेकिन इतना नहीं जितना की खैरागढ़ की जीत का है। इस जीत में एक नहीं कई खास बातें हैं। यह बातें कांग्रेस के बढ़ते जनाधार, मुख्यमंत्री बघेल के नेतृत्व की स्वीकार्यता से जुड़ी हैं तो भारतीय जनता पार्टी के लिए मुद्दों की तलाश और कुछ नेताओं के राजनीतिक वजूद बचाने से भी जुड़ी हैं।

जीत को मैं पिछली जीतों से खास इसलिए कह रहा हूं कि वो तीनों विधानसभा क्षेत्र खैरागढ़ के मुकाबले ज्यादा ग्रामीण परिवेश के थे। ऐसा समझा जाता रहा है कि गांवों में कांग्रेस शहरों के मुकाबले अच्छा कर लेती है, इसलिए वहां जीतना ही था। अब खैरागढ़ की जीत यह बता रही है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस, धीरे-धीरे शहरों और उससे लगे इलाको में भी प्रभावी बनते जा रही है। इसे इस तरह से भी कहा जा सकता है कि शहरों और उससे लगे इलाकों में भारतीय जनता पार्टी की पकड़ धीरे-धीरे ढीली हो रही है।

ठीक है…इस जीत पर यह तर्क भी दिया जा सकता है कि सत्ताधारी दल उपचुनाव जीतता ही है, लेकिन कैसे जीतता है यह भी देखना होगा। खैरागढ़ में का्ंग्रेस की एकदम नयी प्रत्याशी यशोदा वर्मा ने भाजपा के उस क्षेत्र के नामी नेता और दो बार के विधायक कोमल जंघेल को हराया।

20 हजार से ज्यादा वोटों से हराया। जबकि सरकार समेत सभी का मानना था कि जीत तो होगी, लेकिन 10 हजार से कम वोटों से। वोटों का यह अंतर ही बताता है कि कांग्रेस की मौजूदा सरकार पर मतदाताओं का भरोसा है। यही बात कांग्रेस के लिए मनोबल बढ़ाने वाली है और विपक्ष, भाजपा के लिए मायूस करने वाली।

ऐसा भी नहीं था कि इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने जीतने की कोशिश नहीं की। भरपूर कोशिश की। दो केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते और प्रह्लाद पटेल ने कई सभाएं की। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने सभाएं की।

इलेक्शन मैनेजमेंट में माहिर माने जाने वाले पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कई दिन कैंप कर पूरा अभियान संभाला। और पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह जिनका कि परिवार ही यहां से है उन्होंने भी लगातार दौरे किए। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय सहित सभी बड़े नेता यहां के सतत दौरे पर थे।

कांग्रेस में इस चुनाव को लेकर आत्मविश्वास इतना था कि पार्टी ने पहले ही घोषित कर दिया था कि हम दिल्ली या बाहर से किसी बड़े लीडर को यहां नहीं बुलाएंगे। हमारे स्टार प्रचारक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल रहेंगे। मुख्यमंत्री ने खैरागढ़ में 6 दिन कैंप किया और कई सभाएं, रोड शो की। हालांकि ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने इस चुनाव को हल्के में लिया।

प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मोहन मरकाम समेत कई मंत्री, नेताओं और करीब 40 विधायकों ने यहां के चुनाव की कमान संभाली थी। ऐसे में 20 हजार से ज्यादा वोटों की यह जीत यहां आए प्रत्येक कांग्रेसी का मनोबल बढ़ाएगी। इस चुनाव में जिस तरह सीएम भूपेश बघेल ने प्रचार किया और जैसा रिजल्ट आया उससे यह भी साबित हो रहा है कि प्रदेश उनका नेतृत्व स्वीकार कर रहा है।

छुईखदान-गंडई को जिला बनाने के वादे को दे रहे हैं। मुख्यमंत्री ने ऐन चुनाव से पहले इसे जिला बनाने की घोषणा की। कहा कि 16 अप्रैल को कांग्रेस जीतेगी और 17 को जिला बना देंगे। यह मांग इस इलाके की पुरानी मांग थी। प्रदेश के मुख्यमंत्री खुद यह वादा कर रहे थे, लिहाजा कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनने लगा। अब सब यह कह रहे हैं कि इसी वादे ने चुनाव जीता दिया। लेकिन समझना होगा कि यह सिर्फ इस एक वादे की जीत नहीं है। यह वादा करने वाले के विश्वास की जीत है।

वोटर्स सरकार पर भरोसा कर रहे हैं। वो यह मान रहे हैं कि सरकार या मुख्यमंत्री जो कहते हैं करते हैं। यह विश्वास ऐसे ही नहीं बना है, इसके पीछे गोधन योजना, किसान न्याय योजना, मजदूर न्याय योजना जैसी योजनाओं से लोगों की जेब में जाता पैसा है।

इस परिणाम को अपनी योजनाओं और नेतृत्व की सफलता मान सकती है, लेकिन यह भी सच है कि हर बार जिले, तहसील बनाने जैसे वादे वो नहीं कर सकती। कांग्रेस के सामने चुनौती है कि उसे जिला बनने का लाभ अब यहां के लोगों को महसूस कराना होगा। साथ ही जो योजनाएं चल रही हैं वह कैसे और बेहतर तरीके से चलें, लोगों को इसका ज्यादा से ज्यादा लाभ हो इस पर पैनी नजर रखनी होगी। क्योंकि योजनाओं की गड़बड़ी वोटर्स का विश्वास तोड़ेगी और फिर वोटर्स विकल्प तलाशने लगेंगे।

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इसने भरोसा दिलाया कि जिला भी बनेगा, मुख्यमंत्री जो बोल रहे हैं वो तहसील भी बनेगी, कॉलेज भी खुलेगा। यह जीत कांग्रेस सरकार की योजनाओं को, मुख्यमंत्री बघेल के नेतृत्व को स्वीकारने का परिणाम भी है।

 

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