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श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने दिया इस्तीफा

कोलंबो: श्रीलंका में एक समय में सबसे ताकतवर  रह चुके श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को जनता की ताकत के आगे झुकना पड़ा। श्रीलंका में अल्पसंख्यक तमिलों पर क्रूर अत्याचार करने वाले मंहिदा राजपक्षे के खिलाफ महीनों से लोगों प्रदर्शन कर रहे थे और अंतत: उन्हें इस्तीफा देना पड़ा है। इस इस्तीफे के बाद भी प्रदर्शनकारी शांत नहीं हुए हैं और वे महिंदा के भाई राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं।

प्रदर्शनकारियों ने महिंदा के घर में भी आग लगाकर उसे राख कर दिया। विश्लेषकों का मानना है कि महिंदा राजपक्षे का इस्‍तीफा देश में राजपक्षे परिवार के प्रभुत्‍व के खात्‍मे की शुरुआत है।

राजपक्षे परिवार श्रीलंका के आजाद होने के बाद दो सबसे प्रभावशाली परिवारों में शामिल है। महिंदा के इस्‍तीफा देने के बाद भी श्रीलंका में व्याप्त आर्थिक और राजनीतिक संकट के खत्‍म होने के आसार दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रहे हैं। हजारों की तादाद में प्रदर्शनकारी महीनों से हर दिन कोलंबो के गाले फेस इलाके में प्रदर्शन स्थल पर इकट्ठा हो रहे हैं और वे राष्ट्रपति गोटाबाया और उनकी सरकार के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। वह भी तब जब देश की अर्थव्यवस्था रसातल में पहुंच गई है।

सोमवार को देश में हुई भारी हिंसा में प्रदर्शनकारियों ने राजपक्षे के आधिकारिक आवास में घुसने की कोशिश की और बाहर खड़े ट्रक को आग लगा दिया। यही नहीं राजपक्षे के पैतृक घर को भी प्रदर्शनकारियों ने जलाकर राख कर दिया है। राजपक्षे सरकार ने विरोध को कुचलने के लिए कर्फ्यू लगा दिया है और सेना को तैनात कर दिया है।

कम से कम 5 लोगों के मारे जाने की खबर है जिसमें एक राजपक्षे के सांसद हैं। प्रदर्शनकारी राजपक्षे की पार्टी के नेताओं और सांसदों के घरों को भी जला रहे हैं। सेना की तैनाती के बाद भी श्रीलंका में हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है। आर्थिक संकट को रोकने और जनता को जरूरी सामानों की आपूर्ति करने में नाकाम रहने पर राजपक्षे परिवार प्रदर्शनकारियों के निशाने पर आ गया है। देश में तेल और गैस के लिए लंबी-लंबी लाइनें लग रही हैं।

करीब 2 करोड़ 20 लाख की आबादी वाले श्रीलंका में खाने और दवाओं की भारी कमी हो गई है। इस भारी असफलता के बाद अब श्रीलंका में राजपक्षे परिवार के सामूहिक इस्‍तीफे की मांग तेज हो गई है। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार भी बहुत ज्‍यादा कम हो गया है। वह भी तब जब भारत समेत दुनियाभर से अरबों डालर की मदद श्रीलंका को दी गई है। चीन के कर्ज जाल में फंसे श्रीलंका पर 51 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है और उसने इसके भुगतान में असमर्थता जताई है।

महिंदा राजपक्षे एक समय में राजपक्षे परिवार में सबसे लोकप्रिय राजनेता थे लेकिन भ्रष्‍टाचार के कई मामले सामने आने के बाद हाल के महीनों में उनकी लोकप्रियता अब रसातल में चली गई है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि राजपक्षे का भ्रष्‍टाचार श्रीलंका के आर्थिक संकट की एक बड़ी वजह है। महिंदा राजपक्षे को तमिल आतंकी संगठन लिट्टे के खात्‍मे का श्रेय दिया जाता है।

हालांकि राजपक्षे पर तमिलों के खिलाफ क्रूर अभियान चलाए जाने के आरोप लगे थे। अब भ्रष्‍टाचार के आरोप से राजपक्षे का पूरा परिवार ही बुरी तरह से घिर गया है। उनकी तुलना फिलीपीन्‍स के कुख्‍यात मर्कोस परिवार से की जा रही है।

राजपक्षे पर 40 हजार तमिलों की मौत का आरोप
साल 2004 में हिंद महासागर में सुनामी के बाद मिली आर्थिक मदद को राजपक्षे परिवार के भ्रष्‍ट तरीके से खा जाने के आरोप लगे हैं। यही नहीं साल 2009 में लिट्टे के खिलाफ अभियान के दौरान सैन्‍य अभियान चलाने के लिए हथियारों की खरीद में भी राजपक्षे परिवार पर भ्रष्‍टाचार के आरोप लगे हैं। लिट्टे पर खूनी जीत के बाद पूरा देश जातीय रूप से बंट सा गया है।

राजपक्षे सरकार पर लिट्टे के खिलाफ अभियान के अंतिम चरण में मई 2009 में मानवता के खिलाफ अपराध के आरोप लगे थे। संयुक्‍त राष्‍ट्र का अनुमान है कि सुरक्षित पनाह तलाश करने के दौरान 40 हजार तमिल नागरिक मारे गए थे।

महिंदा राजपक्षे साल 2004 में पहली बार बहुत कम बहुमत से प्रधानमंत्री बने थे। उन्‍होंने रानिल विक्रम सिंघे को हराया था। महिंदा राजपक्षे ने अपनी कुर्सी को बचाने के लिए कई चालें चलीं और प्रदर्शनकारियों पर क्रूर हमले करवाए लेकिन अंतत: यह सब बेकार रहा और उन्‍हें जाना पड़ा।

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