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जापान से आए थे बापू के तीनों बंदर

गांधी जी के तीन बंदर अब अपने आप में एक कहावत बन चुके हैं। महात्मा गांधी के तीन विचारों को दर्शाने वाले ये बंदर बताते हैं कि हर व्यक्ति को बुराई से दूर रहना चाहिए। न बुरा देखा जाए, न बुरा कहा जाए और न बुरा सुना ही जाए।

राष्ट्रपिता के इन विचारों का वैज्ञानिक आधार भी है जो बताता है कि गलत विचार कहना, सुनना और बोलना किस तरह हमारी शारीरिक और मानसिक सेहत पर असर करते हैं।

बुरा मत देखो : नकारात्मक कंटेंट देखने वालों का व्यवहार बदलने लगता
हंगरी के एक प्रोफेसर जॉर्ज गर्बनर ने 1960 में कल्टीवेशन थ्योरी दी थी। इसमें बताया गया कि व्यावसायिक टीवी कार्यक्रमों में दिखाया जाने वाला सामाजिक व्यवहार किस तरह लोगों के दिलोदिमाग पर असर करता है। ऐसे लोग मीन वर्ल्ड सिंड्रोम के शिकार हो जाते हैं और उन्हें दुनिया में दुख, षड्यंत्र, अनहोनी की आशंकाएं ज्यादा दिखने लगती हैं। उदाहरण के लिए, धारावाहिक देखने वाले लोगों की मानसिकता महिलाओं के प्रति ठीक वैसी हो जाती है, जैसे धारावाहिकों में उन्हें चित्रित किया जाता है।

बुरा मत बोलो : कड़वे बोल अवसाद लाते, इम्युनिटी घटाते
बोलने का सीधा संबंध सोचने से है, जैसे व्यक्ति बोलता है, उसका असर उनके दिमाग और शरीर पर होता है। एक बड़े वैज्ञानिक अध्ययन से पता लगा कि जब लोग खुद में ही नकारात्मकता से बात करते (सेल्फ टॉक) हैं तो मानसिक प्रक्रियाएं प्रभावित होती हैं।

ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में स्थित संघीय विश्वविद्यालय के शोध में पाया गया कि सामाजिक व पारिस्थितिकीय कारकों की वजह से व्यक्ति की मानसिक प्रक्रिया प्रभावित होती है, जो अंतत: मानसिक अबसाद में पहुंचा देती है। इसके अलावा, गुस्सा, कड़वे बोल व अन्य उत्तेजित विचारों से फेफड़े तेजी से सांस भरने लगते हैं और मांसपेशियां स्वत: चलने लगती हैं। इससे शरीर का संतुलन बिगड़ता है जो प्रतिरक्षा पर असर करता है।

बुरा मत सुनो : बेहतर व्यवहार के लिए सुनने की सीमा तय करनी होगी
हार्वर्ड बिजनेस समीक्षा के मुताबिक, सुनने की क्षमता आपके व्यक्तिगत ही नहीं पेशेवर व्यवहार के लिए भी बेहद जरूरी है।पर आपको जो कुछ भी सुन रहे हैं, उसे सिद्धांतों के आधार पर तोलना पड़ेगा और गैर – सिद्धांतिक विचारों से दूरी बनानी पड़ेगी।

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधार्थी बिलियम क्रिस्ट का कहना है कि सुनने की क्षमता ही सामाजिक संबंध स्थापित करने की पहली शर्त है इसलिए व्यक्ति को दूसरों की बात बहुत धैर्य से सुननी चाहिए मगर उसे यह चुनाव भी करना होगा कि वह किस तरह के विचारों के जरिए यह संबंध स्थापित करना चाहता है क्योंकि यह सब उसके सामाजिक और मानसिक व्यवहार को प्रभावित करता है।

माना जाता है कि बापू के यह तीन बंदर चीन से आए थे। एक रोज एक प्रतिनिधिमंडल गांधी जी से मिलने आया, मुलाकात के बाद प्रतिनिधिमंडल ने गांधी जी को भेंट स्वरूप तीन बंदरों का सेट दिया।

गांधीजी इसे देखकर काफी खुश हुए। उन्होंने इसे अपने पास जिंदगी भर संभाल कर रखा। इस तरह ये तीन बंदर उनके नाम के साथ हमेशा के लिए जुड़ गए। गांधी जी के तीन बंदर को अलग-अलग नाम से जाना जाता है।

1. मिजारू बंदर- दोनों हाथों से अपनी दोनों आंखें बंद रखा यह बंदर बुरा न देखने का संदेश देता है।
2. किकाजारू बंद- अपने दोनों हाथों से दोनों कानों को बंद रखा यह बंदर बुरा न सुनने की बात कहता है।
3. इवाजारू बंदर- अपने दोनों हाथों से अपना मुंह बंद करने वाले बंदर का संदेश बुरा न बोलने से जुड़ा है।

तीन संदेश देते तीन बंदरों को जापानी संस्कृति में शिंटो संप्रदाय द्वारा काफी सम्मान दिया जाता है। माना जाता है कि ये बंदर चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के थे और आठवीं शताब्दी में ये चीन से जापान पहुंचे। उस वक्त जापान में शिंटो संप्रदाय का बोलबाला था। जापान में इन्हें ”बुद्धिमान बंदर” माना जाता है और इन्हें यूनेस्को ने अपनी वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल किया है।

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