ताज़ा खबर
Home / Uncategorized / 19 मई को वट सावित्री व्रत, जानिए इस व्रत के लाभ और इससे जुड़ी रोचक कथा

19 मई को वट सावित्री व्रत, जानिए इस व्रत के लाभ और इससे जुड़ी रोचक कथा

वट -सावित्री व्रत के दिन बरगद के वृक्ष की पूजा कर महिलाएं देवी सावित्री के त्याग, पतिप्रेम एवं पतिव्रत धर्म की कथा का स्मरण करती हैं। यह व्रत स्त्रियों के लिए सौभाग्यवर्धक, पापहारक, दुःखप्रणाशक और धन-धान्य प्रदान करने वाला होता है।

पत्नी के अटल निश्चय और उसकी महिमा का गुणगान करने वाला वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है। यह व्रत बरगद के वृक्ष की महिमा का भी गुणगान करता है। इसके अलावा सुहागिन महिलाऐं ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों के लिए उपवास रखती हैं। कुछ महिलाऐं केवल अमावस्या के दिन ही व्रत रखती हैं। उत्तर भारत में यह व्रत अमावस्या को, तो दक्षिण भारत में ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है

Vat Savitri Vrat Kab Hai Know Vat Savitri Vrat 2023 Date Vrat Katha and Importance

व्रत के लाभ
वट-सावित्री व्रत के दिन बरगद के वृक्ष की पूजा कर महिलाएं देवी सावित्री के त्याग, पतिप्रेम एवं पतिव्रत धर्म की कथा का स्मरण करती हैं। यह व्रत स्त्रियों के लिए सौभाग्यवर्धक, पापहारक, दुःखप्रणाशक और धन-धान्य प्रदान करने वाला होता है। जो स्त्रियां सावित्री व्रत करती हैं वे पुत्र-पौत्र-धन आदि पदार्थों को प्राप्त कर चिरकाल तक पृथ्वी पर सब सुख भोग कर पति के साथ ब्रह्मलोक को प्राप्त करती हैं। ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु एवं डालियों में त्रिनेत्रधारी शंकर का निवास होता है और इस पेड़ में बहुत सारी शाखाएं नीचे की तरफ लटकी हुई होती हैं  जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है। इसलिए इस वृक्ष की पूजा से सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैंपौराणिक कथा
भविष्य पुराण के अनुसार देवी सावित्री राजा अश्वपति की कन्या थीं, सावित्री ने सत्यवान को पति रूप में स्वीकार किया, लेकिन नारदजी की भविष्यवाणी थी कि- ‘सत्यवान अल्पायु हैं’
सावित्री के ह्रदय में निरंतर खटकती रहती थी। जब सत्यवान की आयु पूरी होने को आई,तब सावित्री ने विचार किया कि अब मेरे पति की मृत्यु का समय निकट आ गया है यह सोचकर वह भी सत्यभान के साथ काष्ठ लेने जंगल जाने लगी।एक दिन सत्यवान को लकड़ियां काटते समय मस्तक में महान वेदना उत्पन्न हुई और सावित्री से कहा-‘प्रिये!मेरे सिर में बहुत व्यथा है,इसलिए थोड़ी देर विश्राम करना चाहता हूँ।’सावित्री अपने पति के सिर को अपनी गोद में लेकर बैठ गई। उसी समय भैंसे पर सवार होकर यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए।सावित्री ने उन्हें पहचाना और कहा-”आप मेरे पति के प्राण न लें”।यमराज नहीं माने और उन्होंने सत्यवान के शरीर से प्राण खींच लिए। सत्यवान के प्राणों को लेकर वे अपने लोक को चल पड़े।सावित्री भी उनके पीछे चल दीं।बहुत दूर जाकर यमराज ने सावित्री से कहा-”पतिव्रते! अब तुम लौट जाओ,इस मार्ग में इतनी दूर कोई नहीं आ सकता”
।सावित्री ने कहा-”महाराज पति के साथ आते हुए न तो मुझे कोई ग्लानि हो रही है और न कोई श्रम हो रहा है,मैं सुखपूर्वक चल रही हूँ।जिस प्रकार सज्जनों की संगति संत है,वर्णाश्रमों का आधार वेद है,शिष्यों का आधार गुरु और सभी प्राणियों का आश्रय-स्थान पृथ्वी है,उसी प्रकार स्त्रियों का एकमात्र आश्रय-स्थान उनका पति ही है,अन्य कोई नहीं”।सावित्री के पति धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने वर रूप में अंधे सास-ससुर को आँखें दीं और सावित्री को सौ पुत्र होने का आशीर्वाद दिया एवं सत्यवान के प्राणों को लौटा दिया।इस प्रकार सावित्री ने अपने सतीत्व के बल पर अपने पति को मृत्यु के मुख से छीन लिया।

About jagatadmin

Check Also

भोजपुरी गौरव सम्मान समारोह का भव्य आयोजन: प्रभुनाथ बैठा

भोजपुरी गौरव सम्मान समारोह का भव्य आयोजन: प्रभुनाथ बैठा

भिलाई नगर। छग भोजपुरी परिषद की महत्वपूर्ण बेठक डायमंड फर्नीचर नन्दनी रोड भिलाई में परिषद …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *