


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के जरिए देश को संबोधित किया। अपने संबोधन की शुरुआत प्रधानमंत्री ने माघ पूर्णिमा के पर्व से की। उन्होंने कहा कि माघ का महीना विशेष रूप से नदियों, सरोवरों और जलस्रोतों से जुड़ा हुआ माना जाता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि पानी का स्पर्श, जीवन और विकास के लिए जरूरी है। संत रविदास का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ये मेरा सौभाग्य है कि मैं संत रविदास जी की जन्मस्थली वाराणसी से जुड़ा हुआ हूं। प्रधानमंत्री ने कहा कि युवाओं को कोई भी काम करने के लिये, खुद को, पुराने तौर तरीकों में बांधना नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल सीखने के लिए बहुत प्रयास नहीं कर पाया। मैं तमिल नहीं सीख पाया। प्रधानमंत्री ने कहा कि ये एक सुंदर भाषा है।


त्योहारों की अग्रिम शुभकामनाएं, साथ-साथ कोरोना के संबंध में जो भी नियमों का पालन करना उसमें कोई ढिलाई नहीं आनी चाहिए।
मार्च का महीना हमारे फाइनेंशियर ईयर का आखिरी महीना भी होता है, इसलिए, आप में से बहुत से लोगों के लिए काफी व्यस्तता भी रहेगी।
मेरे प्यारे युवा साथियो, आने वाले कुछ महीने आप सब के जीवन में विशेष महत्व रखते हैं। मार्च में होने वाली ‘परीक्षा पे चर्चा’ से पहले मेरी आप सभी एग्जाम वॉरियर्स से, पैरेंट्स से, और टीचर्स से, रिक्वेस्ट है कि अपने अनुभव, अपने टिप्स जरूर शेयर करें। आप मायगोव और नरेंद्र मोदी एप पर शेयर कर सकते हैं।
हमने देखा है कि जिन खेलों में कमेंट्री समृद्ध है, उनका प्रचार-प्रसार बहुत तेजी से होता है। हमारे यहां भी बहुत से खेल हैं लेकिन उनमें कमेंट्री कल्चर नहीं आया है और इस वजह से वो लुप्त होने की स्थिति में हैं।
यह एक ऐसी सुंदर भाषा है, जो दुनिया भर में लोकप्रिय है। बहुत से लोगों ने मुझे तमिल लिटरेचर की क्वालिटी और इसमें लिखी गई कविताओं की गहराई के बारे में बहुत कुछ बताया है। दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल सीखने के लिए बहुत प्रयास नहीं कर पाया, मैं तमिल नहीं सीख पाया।
मैंने इस सवाल पर विचार किया और खुद से कहा मेरी एक कमी ये रही कि मैं दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा– तमिल सीखने के लिए बहुत प्रयास नहीं कर पाया, मैं तमिल नहीं सीख पाया।
कुछ दिन पहले हैदराबाद की अपर्णा रेड्डी जी ने मुझसे ऐसा ही एक सवाल पूछा। उन्होंने कहा कि– आप इतने साल से पीएम हैं, इतने साल सीएम रहे, क्या आपको कभी लगता है कि कुछ कमी रह गई। अपर्णा जी का सवाल बहुत सहज है लेकिन उतना ही मुश्किल भी।
काजीरंगा नेशनल पार्क एंड टाइगर रिजर्व अथॉरिटी कुछ समय से एनुअल वाटरफॉल सेंसस करती आ रही है। इस सेंसस से जल पक्षियों की संख्या का पता चलता है और उनके पसंदीदा हैबिटैट की जानकारी मिलती है।
साथियो, देशभर में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां लोग, ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ में, इसी तरह, अपना योगदान दे रहे हैं। आज यह एक भाव बन चुका है, जो आम जनों के दिलों में प्रवाहित हो रहा है।