नई दिल्ली. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आम चुनाव में जीत हासिल करके लगातार चौथा कार्यकाल हासिल किया. उनकी पार्टी अवामी लीग ने हिंसा की छिटपुट घटनाओं तथा मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) एवं उसके सहयोगियों के बहिष्कार के बीच हुए चुनावों में दो-तिहाई सीट पर जीत दर्ज की. बांग्लादेश के 12वें आम चुनाव में इतिहास में सबसे कम महज 40 फीसदी मतदान दर्ज किया गया. प्रधानमंत्री शेख हसीना ने चुनाव कराने के लिए एक तटस्थ कार्यवाहक सरकार की विपक्षी बांग्लादेश नेशनल पार्टी की मांग को मानने से इनकार कर दिया था. इसके कारण मतदान कम होना स्वाभाविक था.
बहरहाल शेख हसीना की जीत भारत के लिए हर लिहाज से फायदेमंद है. शेख हसीना भारत की एक भरोसेमंद सहयोगी साबित हुई हैं और उनकी सत्ता में वापसी नई दिल्ली के हित में है. हसीना की धुर विरोधी खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बीएनपी को भारत सरकार शत्रुतापूर्ण मानती है. कुछ लोग तो उन्हें पाकिस्तान का प्रतिनिधि तक करार देते हैं. शेख हसीना के पिछले डेढ़ दशक के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच संबंध मधुर रहे हैं और दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की संवेदनशीलता को ध्यान में रखा है.
भारत पहले से ही बांग्लादेश में बहुत अधिक चीनी हस्तक्षेप से सावधान है, जो अपने पड़ोसी देशों पर अपना वर्चस्व कायम करने में भरोसा रखता है. बांग्लादेश की रणनीतिक स्थिति दक्षिण एशिया में मायने रखती है. बांग्लादेश लगभग पूरी तरह से भारत से घिरा हुआ है और मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय, असम और पश्चिम बंगाल के साथ सीमा साझा करता है. अतीत में, विशेष रूप से जब देश पर सेना या बीएनपी का शासन रहा है, तो भारत के अलगाववादियों और विद्रोहियों को सुरक्षित आश्रय मिलता गया है. इसने भारत में संचालन के लिए घरेलू और विदेशी दोनों इस्लामवादियों के लिए एक आधार का काम भी दिया.
शेख हसीना का सत्ता में बने रहना भारत के हित है. भारत में कोई भी सरकार इस वास्तविकता को नजरअंदाज नहीं कर सकती है कि 1996-2001 के बीच और फिर 2009 के बाद से शेख हसीना के शासन के दौरान नई दिल्ली की सुरक्षा एजेंसियों को बांग्लादेशी एजेंसियों से सहयोग मिला है. बांग्लादेश में भारत विरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए वास्तविक प्रयास किए गए हैं. बांग्लादेश में प्रमुख भारत-विरोधी कार्यकर्ताओं को पाकिस्तान की आईएसआई का समर्थन हासिल है. जिसे बेगम खालिदा जिया की बीएनपी के दो शासनकाल के दौरान व्यावहारिक रूप से खुली छूट मिली हुई थी.