रायपुर परसा कोल ब्लॉक को राज्य सरकार की मंजूरी मिलने के साथ ही हसदेव अरण्य के आदिवासियों के गांव-जंगलों के साथ अपने देव स्थानों को बचाने की चिंता बढ़ गई है। परसा खदान प्रभावित हरिहरपुर गांव में पिछले 55 दिनों से धरने पर बैठे आदिवासियों ने सोमवार को जंगल में बुढ़ादेव के स्थान पर जाकर गुहार लगाई।
बड़ी संख्या में साल्ही गांव के जंगल में पहुंचे ग्रामीणों ने पारंपरिक कठौती त्योहार मनाया। बुढ़ादेव की पूजा कर उन्हें भोग अर्पित किया। इस दौरान ग्रामीण काफी देर तक मांदर की थाप पर झूमते रहे। ग्रामीणों ने इस दौरान अपने देव स्थानों, गांवों और जंगलों को बचाने के लिए नारे भी लगाए। ग्रामीणों का कहना था, यह खनन परियोजना फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव के आधार पर आगे बढ़ाई जा रही है। हमारे लोगों ने कभी भी किसी खनन परियोजना को मंजूरी नहीं दी है।
उनका यह विरोध जारी रहेगा। बता दें, राज्य सरकार ने 6 अप्रेल को परसा कोल ब्लॉक में खनन परियोजना हेतु वन स्वीकृति जारी की थी। यह खदान राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को दी गई है। इसके बाद भी खदान से प्रभावित गांव साल्ही, हरिहरपुर और फतेहपुर के लोग विरोध जारी रखे हुए हैं जंगल के पेड़ों को कटने से बचाने के लिए महिलाएं इस तरह इकट्ठा हो रही हैं।
महिलाएं खुद पहरा दे रही
जंगलों को काटे जाने से बचाने के लिए स्थानीय महिलाएं खुद पहरा दे रही हैं। बताया जा रहा है, दो दिन पहले जंगलों में कटाई के खिलाफ महिलाओं ने हल्ला बोल दिया था। आदिवासी महिलाएं साल पेड़ों से लिपट गई थीं।
इन्हीं खदानों के लिए रायपुर आए थे सीएम गहलोत
राजस्थान इस खदान को अंतिम मंजूरी दिलाने के लिए काफी समय से दबाव बना रहा था। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पिछले महीने इसी काम के लिए रायपुर पहुंचे थे। उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ चर्चा की। राजस्थान का तर्क था, खदान संचालन नहीं होने से उनके यहां कोयला संकट खड़ा हो गया है। बिजली घरों के संचालन के लिए पर्याप्त कोयला नहीं मिल पा रहा है। बाद में सरकार ने उनकी बात मान ली और परसा कोयला खदान के लिए वन भूमि देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।