




उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से श्री बांके बिहारी वृंदावन मंदिर के फंड को मंदिर कॉरिडोर के विकास के लिए इस्तेमाल करने की इजाजत मिल गई है। इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार को मंदिर के आसपास 5 एकड़ भूमि अधिग्रहण करने की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने ये भी शर्त रखी है कि अधिग्रहित भूमि देवता के नाम पर रजिस्टर्ड होगी।



वृंदावन बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर परियोजना उत्तर प्रदेश सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसका उद्देश्य मथुरा के वृंदावन में स्थित प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के आसपास के क्षेत्र को विकसित करना और श्रद्धालुओं की सुविधाओं को बढ़ाना है। इस परियोजना का मॉडल वाराणसी के काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और उज्जैन के महाकाल कॉरिडोर से प्रेरित है। इस परियोजना का उद्देश्य मंदिर के आसपास भीड़भाड़ और अव्यवस्था को कम करना। श्रद्धालुओं के लिए दर्शन को सुगम और सुरक्षित बनाना। मंदिर परिसर को और भव्य बनाना और धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देना शामिल है।
कॉरिडोर की विशेषताएं
यह कॉरिडोर लगभग 5 एकड़ में फैला होगा, जिसमें तीन प्रवेश मार्ग होंगे। इसमें वेटिंग रूम, दुकानें, और खुला परिसर शामिल होगा। इसकी अनुमानित लागत 262 करोड़ रुपये है। वर्तमान में 800 श्रद्धालु एक बार में दर्शन कर पाते हैं, लेकिन कॉरिडोर बनने के बाद 5,000 से 10,000 श्रद्धालु एक साथ दर्शन कर सकेंगे। सर्वे और मार्किंग का काम 2023 में शुरू हो चुका है। कॉरिडोर का ब्लू प्रिंट तैयार है, और निर्माण कार्य जल्द शुरू होने की संभावना है।
क्यों है विवाद?
कई स्थानीय निवासियों और पुजारियों ने कॉरिडोर के लिए 300 से अधिक मकानों और दुकानों को ध्वस्त करने की योजना का विरोध किया, क्योंकि इससे उनकी आजीविका और वृंदावन की ऐतिहासिक कुंज गलियों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। याचिकाओं में दावा किया गया कि कॉरिडोर के निर्माण से मदन मोहन और राधावल्लभ जैसे पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित मंदिरों को नुकसान हो सकता है। गोस्वामी परिवार और पुजारियों ने मंदिर के चढ़ावे के धन का कॉरिडोर निर्माण में उपयोग करने पर आपत्ति जताई। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि सरकार को अपने खर्चे पर निर्माण करना होगा, न कि मंदिर के फंड से। मई 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को कॉरिडोर के लिए 5 एकड़ भूमि अधिग्रहण की अनुमति दी और मंदिर के धन के उपयोग की भी अनुमति दे दी।