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चीन-पाकिस्तान की बढ़ने वाली है टेंशन, एक दूसरे की मदद करेंगे या अपनी जान बचाएंगे, भारत से कनेक्शन जानें

इस्लामाबाद/बीजिंग: चीन और पाकिस्तान की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है। दोनों देश एक दूसरे की मदद के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। इसकी पुष्टि हाल के भारतीय सशस्त्र बलों के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी हुई। इसमें चीन ने पाकिस्तान को भारत के खिलाफ सैटेलाइट और तकनीकी खुफिया जानकारियां साझा की थी। पाकिस्तान ने तो इस ऑपरेशन के जवाब में भारत के खिलाफ चीनी हथियारों का इस्तेमाल भी किया था। लेकिन, अब इन दोनों देशों की टेंशन बढ़ने वाली है। हालात इतने खराब हो जाएंगे कि दोनों को खुद की जान बचाने के लाले होंगे। ऐसे में एक दूसरे की मदद के बारे में इनको सोचने का मौका तक नहीं मिलेगा।

निकट अंतरिक्ष में मौजूदगी बढ़ा रही भारतीय वायुसेना

दरअसल, भारतीय वायुसेना ने क्षेत्रीय हालातों के मद्देनजर पारंपरिक हवाई क्षेत्र से परे देखना शुरू कर दिया है। यह रणनीतिक क्षेत्र निकट अंतरिक्ष है, जो पृथ्वी की सतह से 20 से 100 किलोमीटर ऊपर फैला हुआ है। यह क्षेत्र, जिसे अक्सर “अनदेखा मध्य” कहा जाता है, पारंपरिक विमानों की पहुंच से ऊपर और उपग्रहों की कक्षाओं से नीचे स्थित है। यह इलाका दुश्मन के इलाके की लंबी दूरी तक निगरानी, संचार और रक्षा अनुप्रयोगों के लिए एक अनूठा अवसर प्रदान करता है। उच्च-ऊंचाई वाले प्लेटफॉर्म, री-एंट्री व्हीकल और हाइपरसोनिक तकनीक में प्रगति के साथ भारतीय वायुसेना इस उभरते हुए क्षेत्र में अपनी उपस्थिति स्थापित करना शुरू कर रही है।

निकट अंतरिक्ष में मौजूदगी से क्या लाभ होंगे

एशिया टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, निकट अंतरिक्ष कई रणनीतिक लाभ प्रदान करता है। यह विवादित या दूरदराज के क्षेत्रों पर लगातार निगरानी करने की अनुमति देता है, कठिन इलाकों में विश्वसनीय कम्युनिकेशन लिंक का समर्थन करता है और मिसाइल खतरों का जल्द पता लगाने में सक्षम बनाता है। उपग्रहों के विपरीत निकट-अंतरिक्ष प्लेटफ़ॉर्म को जल्दी और लागत प्रभावी ढंग से संचालित, पुनर्प्राप्त और फिर से तैनात किया जा सकता है। वहीं, उपग्रह किसी भी मिसाइल के पूर्वानुमानित कक्षाओं का अनुसरण करते हैं और एंटी-सैटेलाइट (ASAT) हथियारों के खतरों का सामना भी करते हैं।

भारत इन इलाकों पर रखेगा कड़ी निगरानी

इसके अलावा, निकट अंतरिक्ष के बढ़ते सैन्य अनुप्रयोग भारत की व्यापक सुरक्षा प्राथमिकताओं को पूरा भी करते हैं। विशेष रूप से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन की गतिविधियों की निगरानी, हिन्द महासागर क्षेत्र (IOR) की सुरक्षा और पड़ोसी देशों की बढ़ती मिसाइल क्षमताओं का मुकाबला करने के संबंध में यह काफी प्रभावी साबित हो सकता है। भारतीय वायुसेना के लिए निकट अंतरिक्ष के सबसे तात्कालिक अनुप्रयोगों में से एक खुफिया, निगरानी और टोही (ISR) के क्षेत्र में है। उच्च ऊंचाई वाले छद्म उपग्रह (HAPS) और समताप मंडल के गुब्बारे जैसे प्लेटफ़ॉर्म लंबी अवधि के लिए 20 से 30 किलोमीटर की ऊंचाई से निगरानी रख सकते हैं।

उपग्रह और ड्रोन से ज्यादा फायदा पहुंचाएंगे ये प्लेटफॉर्म

सौर ऊर्जा से चलने वाली और उन्नत सेंसर से लैस ये प्रणालियां व्यापक क्षेत्र में उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरें और सिग्नल इंटेलिजेंस प्रदान कर सकती हैं। यह लगातार हवाई उपस्थिति सीमा निगरानी के लिए आदर्श है, खासकर लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश और सियाचिन ग्लेशियर जैसे दूरदराज के इलाकों में। पारंपरिक ड्रोन और मानवयुक्त विमान ईंधन और इंड्यूरेंस की दृष्टि से सीमित होते हैं, जबकि उपग्रह केवल निश्चित अंतराल पर ही किसी दिए गए क्षेत्र से गुजर सकते हैं। HAPS और इसी तरह के निकट-अंतरिक्ष वाहन इस महत्वपूर्ण निगरानी अंतर को भर सकते हैं।

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