



चित्रकूट: उत्तर प्रदेश का चित्रकूट जिला अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है. हालांकि, इस जिले की प्रसिद्धि का यहां के उन युवाओं के लिए कोई मतलब नहीं है जिन्हें अपना पेट पालने और परिवार चलाने के लिए मजबूरी में अपना घर-परिवार छोड़ना पड़ता है. इतना ही नहीं जहां वो कमाने खाने के लिए जाते हैं वहां उन्हें ढंग से रहने की जगह तक नहीं मिलती. युवाओं को रोजगार देने के तमाम वादा करने वाले तमाम सरकारी वादों के बाद भी युवा रोज़ी-रोटी की तलाश में अपनी जड़ों को छोड़कर दिल्ली, सूरत, गुजरात, वापी, अहमदाबाद और नोएडा जैसे बड़े महानगरों में जाने को मजबूर हैं. इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह बेरोजगारी है. जिले के युवाओं के पास रोजगार के लिए बाहर जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है.



महानगरों की ओर कर रहे पलायन
बता दें कि चित्रकूट जिले के ग्रामीण और शहरी इलाकों में बेरोजगारी की समस्या विकराल है. मानिकपुर रेलवे जंक्शन पर अक्सर प्रवासी लोग मिलते हैं जो अपना घर-परिवार छोड़कर अन्य शहरों और राज्यों की ओर जा रहे होते है. इन लोगों का कहना है कि गांव में उन्हें कोई स्थिर रोजगार नहीं मिलता. अगर मिल भी जाता है तो उसकी मजदूरी इतनी कम होती है कि परिवार का खर्च भी मुश्किल से चला पाते हैं.
पलायन कर रहे लोगों ने कही यह बात
मानिकपुर स्टेशन में अपनी ट्रेन के इंतजार में बैठे बाल गोविंद, संतोष और लवकुश ने लोकल 18 को जानकारी देते हुए बताया कि जनपद में रोजगार की स्थिति बुरी है. प्रतिदिन चित्रकूट के सैकड़ों लोग पलायन कर महानगरों की ओर जा रहे हैं. सरकार को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है.
दूसरे शहरों में कमाने के लिए जा रहे लोगों ने अपना दर्द बताते हुए कहा कि उन्हें अपने मां-बाप, भाई-बहन, बीवी और बच्चों को छोड़ना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता पर मजबूरी में पेट भरने के लिए उन्हें अपने जनपद से दूसरे राज्य की ओर पलायन करना पड़ रहा है.
चित्रकूट में मनरेगा में भी नहीं मिल रहा मजदूरों को काम
पलायन को मजबूर लोगों का कहना है कि उन्हें चित्रकूट में मनरेगा में भी कोई काम नहीं मिल रहा है. लोगों की यह भी शिकायत है कि अगर सरकार यहां के लोगों के रोजगार को लेकर चिंतित होती तो इस दिशा में कुछ प्रयास जरूर करती और यहां भी फैक्ट्रियां लगती और उन्हें रोजगार मिलता. इससे उन्हें दूसरे राज्यों की ओर पलायन नहीं करना पड़ता.