ताज़ा खबर
Home / Uncategorized / घर में कुत्ता पालने को लेकर प्रेमानंद महाराज जी ने क्या कहा, जानें सच्चा धार्मिक मत

घर में कुत्ता पालने को लेकर प्रेमानंद महाराज जी ने क्या कहा, जानें सच्चा धार्मिक मत

इन सवालों का जवाब हाल ही में प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज (Premanand Maharaj) ने एक कार्यक्रम के दौरान दिया, जो अब सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया है। धर्म और आधुनिकता के इस दोराहे पर खड़े लोग जानना चाहते हैं कि क्या पालतू कुत्तों को घर में रखना पाप है या प्रेम का प्रतीक?

वर्तमान समय में जब पालतू जानवरों को परिवार का हिस्सा माना जाता है, ऐसे में संत प्रेमानंद जी की प्रतिक्रिया न केवल धार्मिक दृष्टिकोण को उजागर करती है बल्कि समाज की सोच पर भी असर डाल रही है। आइए जानते हैं उन्होंने इस विषय में क्या स्पष्ट किया और उनके कथन का धार्मिक तथा सामाजिक महत्व क्या है।

क्या घर में कुत्ता पालना धार्मिक दृष्टि से सही है?

प्रेमानंद महाराज ने हाल ही में एक धर्मसभा में सवाल के जवाब में कहा कि कुत्ते को घर में रखना शास्त्रों के अनुसार उचित नहीं है। उनका मानना है कि कुत्ता वफादार जरूर होता है, लेकिन उसे घर के भीतर रखना वास्तु और धार्मिक दृष्टिकोण से सही नहीं माना गया है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि घर में यदि कुत्ता रहता है, तो घर की सकारात्मक ऊर्जा प्रभावित हो सकती है और ये कुछ प्रकार की समस्याएं जैसे रोग, क्लेश या दरिद्रता को जन्म दे सकती है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई व्यक्ति रक्षा के उद्देश्य से या सेवा भावना से कुत्ता पालता है, तो वह उसके व्यक्तिगत कर्म और नियत पर निर्भर करता है।

शास्त्रों और धर्मग्रंथों में क्या लिखा है?

हिंदू धर्म में जानवरों के प्रति दया और करुणा को सर्वोच्च माना गया है। लेकिन जब बात घर के अंदर कुत्ते को रखने की आती है, तो वास्तु शास्त्र और गरुड़ पुराण जैसे ग्रंथों में इसे शुभ नहीं माना गया है।

गरुड़ पुराण में स्पष्ट उल्लेख है कि कुत्ते और अन्य मांसाहारी जीवों का वास घर में नकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करता है। यही कारण है कि पुराने समय में लोग कुत्ते को आँगन या दरवाजे के बाहर ही रखते थे। वास्तु शास्त्र के अनुसार, कुत्ते की मौजूदगी से घर की ईशान दिशा में रुकावट आती है, जो परिवार के स्वास्थ्य और मानसिक शांति को प्रभावित कर सकती है।

आधुनिक सोच और धार्मिक दृष्टिकोण में संतुलन जरूरी है

आज का युवा वर्ग कुत्तों को सिर्फ जानवर नहीं, बल्कि परिवार का हिस्सा मानता है। कई लोगों के लिए कुत्ता भावनात्मक सहारा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या धार्मिक मान्यताओं को पूरी तरह मानना आवश्यक है, या फिर समय के साथ व्याख्या में बदलाव संभव है?

प्रेमानंद महाराज का उत्तर इस दिशा में संतुलन बनाए रखने की सलाह देता है। उन्होंने यह नहीं कहा कि कुत्ते से नफरत करो या उसे त्याग दो, बल्कि ये समझने को कहा कि धार्मिक दृष्टि से उसकी उपस्थिति को मर्यादा में रखा जाए।

यदि कोई कुत्ता बाहर के परिसर में रह रहा है, साफ-सफाई का ध्यान रखा जा रहा है, और उसकी उपस्थिति से घर में कोई नकारात्मकता नहीं आ रही है, तो धार्मिक दृष्टि से उसे गलत नहीं कहा जा सकता।

About jagatadmin

Check Also

धर्मांतरण पर प्रहार, घर वापसी से मिली नई राह, पंडरिया विधायक भावना बोहरा के प्रयासों से वनांचल के 70 से अधिक लोगों ने की अपने मूल धर्म में वापसी, विधायक ने पैर पखारकर किया अभिनंदन

पंडरिया विधायक भावना बोहरा द्वारा पंडरिया विधानसभा में निरंतर सनातन संस्कृति के प्रचार-प्रसार से लेकर …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *