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केरल के तटीय इलाकों को धीरे-धीरे लील रहा समंदर, 1 करोड़ से ज्यादा लोगों पर संकट के बादल

Kerala Sea Surge: भगवान का घर माना जाने वाला केरल नई चुनौती से जूझ रहा है। राज्य के आधे समुद्री किनारे धीरे-धीरे समुंदर की आगोश में समा रहे हैं। इस कारण न सिर्फ लोगों का विस्थापन हो रहा है बल्कि टूरिजम पर भी असर पड़ा है। एक्सपर्ट का मानना है कि केरल के 9 तटीय जिले जलवायु परिवर्तन

तिरुवनंतपुरम: केरल में अलपुझा के तट पर मछली पकड़ने वाले समुदाय कदलम्मा चटिकिल्ला की एक मान्यता है, समुद्र माता कभी धोखा नहीं देंगी। अब उनका भरोसा टूट रहा है, क्योंकि केरल में समंदर की लहरें रोजाना जमीन को निगल रही हैं। अरब सागर के गर्म होने और तटीय इलाकों में रेत का अवैध खनन सागर का किनारा सिकुड़ रहा है। लहरों के खौफनाक तेवर के कारण लोगों को पुश्तैनी घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ा है। मछुवारों के पास ऐसा किनारा नहीं बचा, जहां उनकी नाव खड़ी हो। केरल के 9 तटीय जिलों में 9.3 मिलियन से अधिक लोगों की आजीविका और घरों को कटाव का खतरा मंडरा रहा है। एरियाड, अझिकोड, चेलानम, अंबलप्पुझा, पुरक्कड़, कुझुपिल्ली और वडानापिल्ली जैसे क्षेत्रों में समुद्री किनारे खतरनाक कैटिगरी में पहुंच गए हैं।

Coastal areas in Kerala will witness increasing sea surge in coming years: Experts - The Economic Times

हर साल जमीन काट रहा है समंदर
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट की अनुसार तिरुवनंतपुरम में रहने वाले सुजीत ने बताया कि शंकुमुगम का किनारा पहले लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र था, मगर पिछले 30 साल में यह छोटे से टुकड़े में सिमट कर रह गया है। लोग अब अपना घर बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। केरल की 590 किमी लंबा समुद्र का किनारा है, जिनमें से 55 फीसदी कटान की जद में आ चुके हैं। इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशियन सर्विस (INCOIS) के अनुसार केरल की 300 किमी समुद्र तट कटान से प्रभावित है। कन्नूर, कोच्चि, अलपुझा और कासरगोड जैसे क्षेत्रों में हर साल 6 मीटर की दर से कटाव हो रहा है। तिरुवनंतपुरम, कोल्लम, मलप्पुरम और त्रिशूर के कुछ हिस्सों में समुद्र तट पहले ही गायब हो चुके हैं या गायब होने की
कगार पर पहुंच गए हैं।

 

अरब सागर के गर्म होने से लहरें हुईं प्रचंड
रिपोर्ट के अनुसार, अरब सागर के गर्म होने से यह नुकसान और बढ़ गया है, जिसके कारण चक्रवाती घटनाएं बढ़ी हैं और समुद्र की लहरें प्रचंड हो गई हैं। पहले जून-जुलाई में लहरें खौफनाक होती थीं, अब मई से अगस्त तक गरजती हैं। इस कारण कई समुदाय को विस्थापित होना पड़ा। उनके 600 घर समुद्र में समा गए। रेत खनन ने इस समस्या को नासूर बना दिया। थोट्टापल्ली बंदरगाह के पास रहने वाले मछुआरे कलेश मछली पकड़ने के अलावा और कुछ नहीं जानता। 2004 की सुनामी में उसका घर खत्म हो गया। जो नया घर बनाया, वह भी कटाव के मुहाने पर अटका है। कलेश की मां सुरा ने कहा कि कटान के कारण मछली पकड़ना कम हो गया है। अब कोई समुद्र तट नहीं बचा है, जहां वह अपनी नाव को किनारे पर खींच सकें। उनकी नीली नाव उनके यार्ड में खड़ी है।

 

टूरिज्म और मछुवारों पर पड़ा बुरा असर
अलप्पड़ के के सी श्रीकुमार ने बता कि 1955 में अझीक्कल से वेल्लानाथुरुथ तक का तटीय क्षेत्र 89 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था। 2004 तक यह सिकुड़ कर मात्र 7 वर्ग किलोमीटर रह गया था। एक समय था, जब अलप्पड़ में छोटे जहाज लंगर डालते थे, अब ऐसा नहीं होता है। कटान के कारण कई परिवारों को मजबूरन दूसरी जगह जाना पड़ा है, कुछ तो अपने मूल घरों में कभी वापस नहीं लौटे। केरल के समुद्र तट पर पर्यटन से जुड़े कारोबार करने वाले भी समस्याओं से जूझ रहे हैं। कोवलम में जीवन बीच रिसॉर्ट चलाने वाले अनीश ने बताया कि पहले समुद्र तट की चौड़ाई 30 मीटर थी। अब यह केवल 10 मीटर रह गई है। इसका असर यह हुआ कि टूरिस्ट अब यहां लंबा नहीं टिकते, पहले वे महीनों समंदर का आनंद लेते थे।

 

 

एक्सपर्ट ने बताया क्यों खूंखार हो रहा है समुद्र
केरल यूनिवर्सिटी ऑफ फिशरीज एंड ओसियन स्टडीज (KUFOS) की स्टडी में सामने आया कि 2012 से 2021 के बीच केरल ने 223 हाई टाइड की घटनाओं का अनुभव किया। अलप्पुझा में सबसे अधिक 105, उसके बाद एर्नाकुलम (64) और त्रिशूर (54) का स्थान रहा। केयूएफओएस के गिरीश गोपीनाथ के अनुसार, दक्षिण और मध्य केरल अपने रेतीले तटों के कारण अधिक संवेदनशील हैं, जबकि उत्तर में चट्टानी तट नहीं हैं। जलवायु परिवर्तन और तटीय क्षेत्रों पर बनी दीवारें, बंदरगाह जैसी कृत्रिम संरचनाएं भी मुसीबत बढ़ा रही है। उन्होंने कहा कि एक ऐसी घटना है जिसमें समुद्री जल तट पर बह जाता है और अपने साथ भारी मात्रा में तलछट ले आता है। दुर्भाग्य से, नहरों के बंद होने और अतिक्रमण के कारण पानी और कीचड़ के वापस बहने का कोई रास्ता नहीं है, जिससे समस्या और बढ़ जाती है। केरल विश्वविद्यालय के भूविज्ञान के प्रोफेसर ई शाजी ने एक समुद्र तट को पुनर्जीवित करने में कम से कम पांच साल लगेंगे।

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