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हर महीने पौने सात लाखों खर्च,फिर भी बढ़ रहे मच्छर

बीते कुछ दिनों से शहर में मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है। शहर के हर क्षेत्र में मच्छरों का आतंक बना हुआ है। इससे शहरवासी त्रस्त हो चुके हैं। इधर निगम प्रबंधन का कहना है कि मौसम में परिवर्तन होने की वजह से मच्छरों का प्रकोप बढ़ा है। जबकि निगम की ओर से मच्छर भगाने हर महीने पौने सात लाख स्र्पये खर्च किए जा रहे हैं।

शहर का ऐसा कोई मोहल्ला व गली नहीं होगी जहां शाम होते ही मच्छर भिनभिनाते नजर न आते हों। आलम यह है कि अंधेरा छाते ही मच्छरों का प्रकोप बाहर के साथ ही घरों के अंदर शुरू हो जाता है। साथ ही मलेरिया, डेंगू आदि बीमारियों को बुलावा दे रहे हैं। ऐसे में मच्छर व लार्वा नियंत्रण के लिए नगर निगम की ओर से हर महीने खर्च किए जा रहे छह लाख 84 हजार स्र्पये का कोई मतलब नहीं निकल रहा है।

निगम से मिली जानकारी के अनुसार लार्वा कंट्रोल के लिए हर साल ठेका होता है। इसके तहत हर महीने दो लाख 79 हजार स्र्पये खर्च नाले-नालियों में दवा का छिड़काव किया जाता है। इसी तरह मौजूदा स्थिति में निगम की 10 फागिंग मशीन का उपयोग किया जा रहा है। इसका एक दिन का खर्च 13 हजार 500 स्र्पये आता है। ऐसे में फागिंग मशीन के माध्यम से हर महीने चार लाख पांच हजार स्र्पये खर्च किए जा रहे हैं। इधर, रोकथाम नहीं होने पर निगम की ओर से प्रकोप बढ़ने का कारण मौसम में बदलाव को बताया जा रहा है।

मच्छर का प्रकोप पूरे शहर में देखने को मिल रहा है। लेकिन, तेलीपारा, तालापारा, जरहाभाठा, भारतीय नगर, रेलवे परिक्षेत्र, दयालबंद के साथ शहर के स्लम क्षेत्रों में मच्छरों का प्रकोप कुछ ज्यादा ही दिख रहा है। इसके बाद भी निगम प्रबंधन मच्छरों को नियंत्रित करने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठा रहा है।

5 से 30 लाख स्र्पये खर्च करता है। लेकिन, इसके बाद भी इनकी सफाई सही तरीके से नहीं हो पाती और गंदगी बनी रहती है। गंदगी के बीच लार्वा पनपने का सही वातावरण मिलता है और लार्वा की संख्या कम होने के बजाय बढ़ने लगती है।

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