



इंदौर: देश भर में अलग-अलग मंदिरों की तरह-तरह की मान्यताएं और मन्नतें होती है. आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर से रूबरू कराने जा रहे हैं, जहां मन्नत में कोई प्रसाद या दान दक्षिणा नहीं बल्कि कपड़ा काटने वाली कैंची चढ़ाई जाती है.



दिन में 3 रूपों में मां भवानी देती हैं दर्शन
इंदौर से करीब 20 किलोमीटर दूर हरसोला गांव है. यहां 400 वर्ष पुराना स्वयंभू भवानी माता का मंदिर है. कहा जाता है जिस जमीन पर मंदिर में माता की प्रतिमा विराजमान है, वहीं से 400 साल पहले माता की मूर्ति निकली थी, जो आज भी हूबहू अपने भव्य स्वरूप में मौजूद है. पुजारी बालकृष्ण शर्मा की पिछली चार पीढ़ियां मंदिर में पूजा पाठ का काम देख रही हैं. उन्होंने बताया ” यहां माता दिन में 3 रूपों में दर्शन देती है, सुबह बालपन, दोपहर युवावस्था और शाम को माता के वृद्ध स्वरूप में दर्शन होते हैं.”
माता को कैंची चढ़ाने से बोलने लगता है बच्चा
मंदिर के पुजारी बालकृष्ण शर्मा ने बताया, “यह मंदिर ऐसे बच्चों की मान्यता के लिए खास प्रसिद्ध है, जो जन्म लेने के बाद 4-5 साल तक बोल ही नहीं पाते. ऐसी स्थिति में बच्चों के परिजन कई साल तक लाखों का इलाज करने के बाद भी निराश हो जाते हैं. तमाम निराश परिजनों के लिए यह मंदिर आध्यात्मिक रूप से उनकी उम्मीद का केंद्र है. यहां मान्यता है कि जो बच्चे जन्म से बोल नहीं पाते हैं, यदि उनके परिजन माता के दर्शन कर कैंची चढ़ाने का संकल्प लेते हैं, तो अधिकतम एक महीने में वह बच्चा बोलने लगता है.”

लोकप्रिय होने से दूर-दराज से आते हैं भक्त
हरसोला माता के मंदिर में देश के विभिन्न शहरों और इलाकों से परिजन अपने बच्चों की फरियाद लेकर पहुंचते हैं. बता दें कि जब उनकी मान्यता पूर्ण हो जाती है तो वह यहां कैंची चढ़ाने के लिए हाजिर होते हैं. पुजारी शर्मा बताते हैं ” पहले यहां इक्का दुक्का कैंची चढ़ती थी, लेकिन अब महीने में 10 से 15 भक्त मन्नत पूर्ण होने पर कैंची चढ़ाने आते हैं.” उन्होंने कहा मंदिर में कोई विशेष कैंची नहीं, बल्कि श्रद्धालु अपनी इच्छा और क्षमता के अनुरूप यहां कैसी भी कैंची अर्पित कर सकता है.”