



नई दिल्ली: भारत का गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टैब्लिशमेंट (GTRE) एक नया इंजन बना रहा है। इसका नाम कावेरी 2.0 है। यह एक टर्बोफैन इंजन है। यह इंजन पहले वाले कावेरी इंजन से बेहतर होगा। इसे आने वाले लड़ाकू विमानों में लगाने की योजना है। GE-F404 इंजन बहुत अच्छा काम करता है। कावेरी 2.0 इंजन भी वैसी ही ताकत पाना चाहता है, लेकिन यह तकनीक भारत की होगी। GTRE का लक्ष्य GE-F414 इंजन जैसी क्षमता हासिल करना है। यह इंजन आधुनिक लड़ाकू विमानों में लगा होता है। जानते हैं इस इंजन के बारे में पूरी कहानी। माना जा रहा है कि भारत का कावेरी इंजन 2.0 अगर सफल हो गया तो इससे अमेरिका, फ्रांस, चीन, पाकिस्तान और तुर्की की नींद उड़ जाएगी।



क्या है कावेरी 2.0, जिस पर है भारत को भरोसा
इंडियन डिफेंस न्यूज के अनुसार, कावेरी 2.0 भारत के गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टेब्लिशमेंट (GTRE) द्वारा विकसित किया जा रहा अगली पीढ़ी का टर्बोफैन इंजन है। इसका उद्देश्य मूल कावेरी इंजन को बेहतर बनाना है और इसे भविष्य के लड़ाकू विमानों में इस्तेमाल करने के लिए बनाया गया है। कावेरी 2.0 इंजन कोर को 55 से 58 kN के बीच थ्रस्ट पैदा करने के लिए डिजाइन किया गया है। आफ्टरबर्नर (वेट थ्रस्ट) के साथ यह 90 kN से अधिक प्राप्त करने की उम्मीद है। GTRE का लक्ष्य है कि कावेरी 2.0 का प्रदर्शन अमेरिका में बने F-404 (84 kN) और F-414 (98 kN) इंजन की कैटेगरी में हो। अगर, ये इंजन बनाने में भारत कामयाब होता है तो इससे भारत को तेजी से अपने पांचवीं पीढ़ी के जंगी विमानों के बेड़े को तैयार करने में मदद मिलेगी। इससे चीन और पाकिस्तान को टेंशन जरूर होगी।
तापमान और गति में बदलाव बाद भी पॉवरफुल
कावेरी 2.0 को फ्लैट-रेटेड परफॉरमेंस या फ्लैट-रेटेड तकनीक के साथ डिज़ाइन किया गया है, जिसका मतलब है कि यह तापमान और गति में बदलाव के बावजूद लगातार पावर आउटपुट बनाए रखेगा, जो भारत की विविध जलवायु के लिए एक महत्वपूर्ण विशेषता है। मूल ड्राई कावेरी इंजन ड्राई कॉन्फ़िगरेशन में 46kN का थ्रस्ट और आफ्टरबर्नर के साथ 73kN पैदा करता है।
मूल कावेरी में ये थी खामियां, अब होंगी दूर
मूल कावेरी इंजन अपने थ्रस्ट लक्ष्यों को पूरा करने में संघर्ष करता रहा। आफ्टरबर्नर के साथ इच्छित 81 kN के बजाय लगभग 70-75 kN प्राप्त कर पाया। इसके विपरीत, कावेरी 2.0 को 90-100 kN के थ्रस्ट स्तर का उत्पादन करने के लिए डिजाइन किया गया है, जो TEJAS MK-2 और भविष्य के एडवांस्ड जंगी विमानों की उड़ान के लिए जरूरी होगा। दरअसल, भारत अभी अमेरिका से इंजन आयात करता है, जो उसे तकनीक देने को तैयार नहीं है। वहीं फ्रांस ने राफेल जैसे विमान दिए हैं, मगर वह भी उनका सोर्स कोड देने को तैयार नहीं है।
कावेरी 2.0 अमेरिकी इंजन से भी ज्यादा भरोसेमंद!
बताया जा रहा है कि अगर कावेरी 2.0 इंजन अच्छा प्रदर्शन करता है, तो यह F-414 जैसे विदेशी इंजनों का एक अच्छा विकल्प हो सकता है। GTRE का मानना है कि कावेरी 2.0 इंजन भारत के मौसम में बहुत भरोसेमंद और कुशल होगा। इसलिए यह विदेशी इंजनों से मुकाबला कर सकता है। GTRE कावेरी 2.0 इंजन को बनाने के लिए लगभग 1 बिलियन डॉलर का निवेश चाहता है। GTRE ने फ्रांस की एयरोस्पेस कंपनी Safran के साथ मिलकर एक अध्ययन किया है। इस अध्ययन में कावेरी 2.0 इंजन को बनाने की संभावनाओं पर विचार किया गया है। कावेरी इंजन का प्रदर्शन अगले 2-4 सालों में किया जाएगा। उसके बाद कावेरी 2.0 इंजन को बनाने पर विचार किया जा सकता है। यह तब किया जा सकता है जब पहले लड़ाकू विमानों को नए इंजन की जरूरत होगी। आमतौर पर नए इंजन 10 साल बाद लगाए जाते हैं।
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