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भारत के जिस बम से खौफ खाता है पाकिस्तान, उसके ‘जनक’ ने दुनिया को कहा अलविदा

95 साल की उम्र. फिट और सक्रिय इतने थे कि उन्हें इस साल की शुरुआत में परमाणु ऊर्जा आयोग (एईसी) के सदस्य के रूप में फिर से शामिल किया गया. लेकिन मंगलवार को आखिरकार उम्र ने एमआर श्रीनिवासन को जकड़ लिया. भारत में न्यूक्लियर टेक्नोलॉजिस्ट की पहली पीढ़ी में से एक श्रीनिवासन देश के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का निर्माण करने वाले प्रमुख लोगों में से एक थे.

1955 में 25 वर्ष की उम्र में वह परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) में शामिल हुए. श्रीनिवासन 1987 में इसके अध्यक्ष बने और एईसी का भी नेतृत्व किया. श्रीनिवासन मैकेनिकल इंजीनियर थे. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, पीएम मोदी से लेकर विपक्ष के नेता ने उनके निधन पर दुख जताया है.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा किडॉ. एमआर श्रीनिवासन के निधन से बहुत दुखी हूं, जिनका भारत के परमाणु ऊर्जा विकास कार्यक्रम में असाधारण योगदान रहा है. भारत की ऊर्जा सुरक्षा और वैज्ञानिक विकास में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा. उनकी विरासत इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी.

पीएम मोदी ने क्या कहा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा, महत्वपूर्ण परमाणु अवसंरचना के विकास में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका ऊर्जा क्षेत्र में हमारे आत्मनिर्भर होने का आधार रही है. उन्हें परमाणु ऊर्जा आयोग के उनके प्रेरक नेतृत्व के लिए याद किया जाता है. वैज्ञानिक प्रगति को आगे बढ़ाने और कई युवा वैज्ञानिकों को मार्गदर्शन देने के लिए भारत हमेशा उनका आभारी रहेगा.

श्रीनिवासन उस टीम का हिस्सा थे जिसने 1950 के दशक में भारत का पहला अनुसंधान रिएक्टर अप्सरा बनाया था और उसके बाद बनने वाले प्रत्येक परमाणु ऊर्जा संयंत्र में उनकी भूमिका रही. डीएई और एईसी के अध्यक्ष के रूप में उनके उत्तराधिकारियों में से एक अनिल काकोडकर ने कहा, अगर मुझे भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को दिशा देने वाले सबसे प्रभावशाली व्यक्ति की पहचान करनी है, तो वह डॉ. श्रीनिवासन होंगे. वह अपने अंतिम समय तक सक्रिय रहे.

काकोडकर ने कहा कि श्रीनिवासन नियमित रूप से एईसी की बैठकों और अन्य स्थानों पर जाते थे, जहां उन्हें आमंत्रित किया जाता था. उन्होंने कहा, वह आश्चर्यजनक रूप से सक्रिय थे और परमाणु मुद्दों में रुचि रखते थे. श्रीनिवासन 1984 में परमाणु ऊर्जा बोर्ड के प्रमुख बने थे.

1987 में भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (एनपीसीआईएल) में तब्दील होने से पहले बोर्ड सभी परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का प्रबंधन और संचालन करता था. श्रीनिवासन इसके संस्थापक-निदेशक के पद के लिए स्पष्ट पसंद थे.

अन्य नेताओं ने क्या कहा?

पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा, कलपक्कम, रावतभाटा, कैगा, काकरापार और नरौरा में वर्तमान में संचालित परमाणु ऊर्जा स्टेशन राष्ट्र निर्माण में उनके महान योगदान के ज्वलंत प्रमाण हैं. उन्होंने कहा कि होमी भाभा द्वारा स्वयं चुने गए, उन्होंने 60 के दशक के अंत में तारापुर में भारत के सबसे पहले परमाणु ऊर्जा संयंत्र की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा. बाद में उन्होंने कलपक्कम में भारत के व्यापक परमाणु ऊर्जा परिसर की स्थापना करने वाली टीम का नेतृत्व किया. यह उनके प्रेरक नेतृत्व में ही था कि भारत ने मई 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण के बाद कनाडा के सहयोग को वापस लेने का दृढ़तापूर्वक और सफलतापूर्वक सामना किया.

मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कहा कि श्रीनिवासन भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के एक स्तंभ थे जो एक सच्चे राष्ट्र निर्माता थे. श्रीनिवासन अपनी पीढ़ी के उन पहले लोगों में से एक थे जिन्होंने परमाणु ऊर्जा पर सार्वजनिक रूप से बातचीत की पहल की और अखबारों में लेख लिखे तथा सार्वजनिक रूप से बोले, जबकि उस समय परमाणु प्रतिष्ठान में उनके सहकर्मी ऐसा करने से हिचकते थे.

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