



अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत सहित दुनिया के तमाम देश कई नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. इस बीच भारत के सामने अपनी सेना के लिए अत्याधुनिक हथियारों की सप्लाई का मसला है. वैसे तो अमेरिका अपना सबसे एडवांस लड़ाकू विमान एफ-35 भारत को देने की पेशकश कर चुका है. लेकिन, इस बीच भारत एक बड़ा फैसला करने की तैयारी में है. यह ऐसा फैसला है जो भारत के हथियार सेक्टर की रूपरेखा बदल देगा. ऐसे करने की मांग बीते 70-75 सालों से हो रही है. लेकिन, कोई भी सरकार इस बारे में कोई बड़ा फैसला नहीं ले पाई.



दरअसल, भारत लंबे समय से स्वदेशी लड़ाकू विमान एलसीए तेजस के विकास और उत्पादन में लगा हुआ है. इसको डेवलप करने में करीब तीन दशक का समय लगा. ये विमान तैयार हैं और वायु सेना में शामिल किए जा चुके हैं. इसी विमान का एक एडवांस वैरिएंट एमके1ए को डेवलप किया जा रहा है. ये पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान है.
180 लड़ाकू विमानों का ऑर्डर
इंडियन एयरफोर्स ने पहले 83 और दूसरी बार 97 तेजस एमके1ए विमान का ऑर्डर दिया है. इस लड़ाकू विमान को पब्लिक सेक्टर की कंपनी एचएएल ने डेवलप किया है. ये दोनों ऑर्डर करीब 1.13 लाख करोड़ रुपये के हैं. लेकिन, एचएएल इन ऑर्डर्स की सप्लाई करने में विफल साबित हो रहा है.
दूसरी तरफ भारतीय वायु सेना लड़ाकू विमानों की कमी से जूझ रही है. उसके पास 42 स्क्वॉड्रन होने चाहिए थे लेकिन मौजूदा वक्त में केवल 31 स्क्वॉड्रन हैं. भारत चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों से लगातार सुरक्षा खतरों का सामना कर रहा है. इसी समस्या के चलते बीते दिनों वायुसेना प्रमुख ने लड़ाकू विमानों की सप्लाई तेज करने की मांग की थी. एचएएल ने हर साल 30 लड़ाकू विमान की आपूर्ति करने की बात कही थी लेकिन मौजूदा हालात में ऐसा होता बिल्कुल संभव नहीं दिख रहा है.
ऐसे में भारत सरकार एक्शन में आ गई है. सरकार ने रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह के नेतृत्व में एक हाई पावर कमेटी बनाई है जो एक माह के भीतर अपनी रिपोर्ट देगी. इस कमेटी ने एयरफोर्स और एचएएल के अधिकारी भी हैं.
प्राइवेट सेक्टर को आमंत्रण
अब रिपोर्ट आ रही है कि ये कमेटी तेजस विमान के प्रोडक्शन में तेजी लाने के लिए प्राइवेट सेक्टर को शामिल करने का सुझाव दे सकती है. रक्षा सेक्टर से जुड़ी खबरें देने वाली वेबसाइट idrw.org की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि लड़ाकू विमान के प्रोडक्शन को बढ़ाने के लिए प्राइवेट सेक्टर को शामिल किया जा सकता है. इसके लिए एचएएल के कुछ प्लांट को प्राइवेट सेक्टर को आउटसोर्स किया जा सकता है. इसमें नासिक प्लांट की चर्चा है. अगर ऐसा होता है तो आने वाले वक्त में तेजस विमानों का प्रोडक्शन बढ़ेगा और भारत की आयात पर निर्भरता कम होगी.
तेजस विमानों के उत्पादन को बढ़ाने में कई दिक्कते हैं. इन विमानों में जीई कंपनी के इंजन लगे हैं. लेकिन, जीई हर साल 12 से अधिक इंजन सप्लाई करने की स्थिति में है. दूसरी तरह एचएएल को 2030-31 तक सभी 180 विमानों की आपूर्ति करनी है. ऐसे में भारत सरकार लड़ाकू विमान निर्माण में प्राइवेट सेक्टर को ला सकती है ताकि वायुसेना की जरूरतों को पूरा किया जा सके और विदेशी कंपनियों पर निर्भरता कम किया जा सके.
अगर भारत लड़ाकू विमान सेक्टर में निजी कंपनियों को आने की छूट देता है तो एक बड़ा रणनीतिक फैसला होगा. इससे न केवल भारत का लड़ाकू विमान सेक्टर बल्कि चीन-पाकिस्तान जैसे पड़ोसी भी प्रभावित होंगे. अगर भारत तेजी से अपनी पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान बनाता है तो उसे अमेरिकी एफ-35 और रूसी सुखोई 57 की जरूरत नहीं पड़ेगी.