



पंडरिया। कबीरधाम जिले के दूरस्थ वनांचल ग्राम कांदावानी के आश्रित टोला ठेंगाटोला में आकाशीय बिजली गिरने से घायल एक बैगा समुदाय के युवक की मौत हो गई। उसको ईसाई रीति से दफन किए जाने की घटना ने क्षेत्र में धार्मिक पहचान व परंपरा को लेकर नई बहस छेड़ दी है।



इस घटना को लेकर बैगा समाज में आक्रोश है। धर्मांतरण की बढ़ती गतिविधियों को लेकर भी समाज ने गंभीर चिंता जताई है।
- प्राप्त जानकारी के अनुसार 24 वर्षीय अमर सिंह पिता दल सिंह गुरुवार दोपहर अचानक आकाशीय बिजली की चपेट में आ गया। हादसे के वक्त वह खेत के आसपास मौजूद था। बिजली गिरने से वह बेहोश हो गया। परिजन उसे तत्काल घर लाए। पारंपरिक रूप से कोदो के दानों से इलाज की कोशिश की।
- थोड़ी देर में होश आने पर उसे 108 एंबुलेंस से कुकदूर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां से उसे पंडरिया के बाद जिला अस्पताल कवर्धा रेफर किया गया। स्थिति गंभीर होने पर उसे रायपुर के डीकेएस अस्पताल में भर्ती किया, जहां शनिवार रात उसने दम तोड़ दिया।
सोशल मीडिया से खुला अस्पताल प्रबंधन का सच
- बताया गया कि अमर सिंह के साथ उसके भाई राम सिंह अस्पताल में मौजूद था। इलाज के दौरान रायपुर अस्पताल के कर्मचारियों ने मृत्यु प्रमाण पत्र तैयार करने के नाम पर दो हजार रुपये की मांग की थी, जो पीड़ित परिजनों ने दे भी दिया। इसके बाद भी मृत देह को लेकर कोई स्पष्ट प्रक्रिया नहीं अपनाई गई।
- रविवार को बिना पोस्टमार्टम के शव सौंप दिया गया। यह बात रायपुर के मीडिया तक पहुंची, तो सोशल मीडिया पर खबर तेजी से वायरल हुई। दबाव के बाद सोमवार को पोस्टमॉर्टम की औपचारिकता पूरी की गई। शव को वाहन से गांव रवाना किया गया।
ईसाई पद्धति से दफन
- सोमवार शाम चार बजे मृतक का शव गांव पहुंचा, तो वहां उसे हिंदू या बैगा परंपराओं के बजाय ईसाई धर्म की रीति से दफनाया गया, जिससे पूरे क्षेत्र में असंतोष फैल गया। बैगा समाज के प्रदेश अध्यक्ष इतवारी माछीया ने घटना पर गहरा आक्रोश जताया।
- उन्होंने कहा कि हमारे समाज में बीमारी या हादसे से मौत पर पारंपरिक विधि से शव का दाह संस्कार किया जाता है। अमर सिंह का दफन किया जाना हमारी सांस्कृतिक परंपराओं का सीधा अपमान है। यह धर्म परिवर्तन का परिणाम है, जिसे बैगा समाज स्वीकार नहीं करता।
- उन्होंने आगे बताया कि बैगा समाज में धर्म परिवर्तन करने वालों का सामाजिक आयोजनों से बहिष्कृत किया जाता है। वे दोबारा समाज में शामिल होना चाहते हैं, तो सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी होती है। परंपरागत तरीके से नारियल व अगरबत्ती चढ़ाकर सामाजिक स्वीकृति लेनी होती है।
‘बीमारी से ठीक करने’ का बहाना बनाकर धर्मांतरण
बैगा समाज के मुखिया बताते हैं कि बीमारियों को ठीक करने, आर्थिक मदद का प्रलोभन देने और सामाजिक सहानुभूति के नाम पर आदिवासी समुदाय में ईसाई धर्मांतरण की गतिविधियां तेजी से फैल रही हैं। खासकर उन गरीब और असहाय परिवारों को लक्ष्य बनाया जा रहा है, जो इलाज और सहारे की तलाश में होते हैं।
प्रशासन पर उठे सवाल
मृतक युवक को पोस्टमार्टम के बिना शव सौंपे जाने, परिजनों से पैसे मांगने और पूरे घटनाक्रम में प्रशासनिक उदासीनता के आरोप भी लगे हैं। अमर सिंह की मौत एक प्राकृतिक आपदा थी, लेकिन उसके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया एक सामाजिक संघर्ष बनकर सामने आई है। यह सवाल अब न केवल धर्म की आजादी पर, बल्कि आदिवासी समाज की पहचान, संस्कृति और सरकारी तंत्र की निष्क्रियता पर भी गूंज रहा है।
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