



नई दिल्ली: मेटल सेक्टर की दिग्गज कंपनी वेदांता लिमिटेड के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने हाल में एक ट्वीट किया था। इसमें उन्होंने देश में शिपिंग इंडस्ट्री की हालत पर चिंता जताई थी। उनका कहना है कि भारत की शिपिंग इंडस्ट्री चीन के मुकाबले काफी पिछड़ गई है और इसमें तुरंत सुधार करने की जरूरत है। सरकार ने उनकी फरियाद सुन ली है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के मुताबिक सरकार ने देश में जहाजों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए एक बड़ा फैसला लिया है। सरकार अगले छह साल में इस इंडस्ट्री को 20,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की मदद देगी।



सूत्रों के मुताबिक यह मदद शिपबिल्डिंग फाइनेंशियल असिस्टेंस पॉलिसी के दूसरे चरण के लिए होगी। साथ ही सरकार चार नए ग्रीनफील्ड शिपबिल्डिंग और रिपेयर हब भी बनाएगी। इनके लिए जमीन की पहचान कर ली गई है। ओडिशा में पारादीप पोर्ट के पास केंद्रपाड़ा, आंध्र प्रदेश में दुगराजपतनम, गुजरात में कांडला और तमिलनाडु में तूतीकोरिन में 2,000-3,000 एकड़ के चार प्लॉट चुने गए हैं। यहां जहाजों के निर्माण और मरम्मत के केंद्र बनाए जाएंगे।
कितने जहाजों की जरूरत
देश को अगले पांच सालों में लगभग 112 जहाजों की जरूरत है। इन जहाजों का इस्तेमाल कच्चा तेल, पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स, एलपीजी, एलएनजी और अन्य सामान ढोने के लिए किया जाएगा। इनकी अनुमानित लागत 85,700 करोड़ रुपये है। लेकिन हमारे देश के शिपयार्ड सिर्फ 28 जहाज ही बना सकते हैं। एक सूत्र ने बताया कि घरेलू मांग को देखते हुए नए शिपबिल्डिंग हब बनाना बहुत जरूरी है। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय को भी मई में 10 मीडियम रेंज टैंकरों के लिए टेंडर निकालने के लिए कहा गया है।
आंध्र प्रदेश सरकार ने जापान की सबसे बड़ी शिपबिल्डर कंपनी इमाबारी शिपबिल्डिंग कंपनी और दक्षिण कोरिया की दो बड़ी कंपनियों एचडी केएसओई और Hanwha Ocean से दुगराजपतनम में बनने वाले प्रोजेक्ट के बारे में बात की है। अभी भारत में सिर्फ आठ बड़े, सात मध्यम और 28 छोटे शिपयार्ड हैं। एक अधिकारी ने कहा कि घरेलू मांग को पूरा करने और आने वाले वर्षों में एक बड़ा ग्लोबल प्लेयर बनने की बहुत संभावना है।अधिकारियों ने यह भी बताया कि 25,000 करोड़ रुपये का मैरीटाइम डेवलपमेंट फंड बनाने का प्रस्ताव कैबिनेट के सामने रखा जाएगा। यह फंड शिपिंग सेक्टर को इक्विटी और डेट सिक्योरिटीज के ज़रिए वित्तीय मदद देगा।
भारत बनाम चीन
भारत समुद्री ताकत के मामले में दुनिया में 16वें नंबर पर है। भारत का लक्ष्य 2030 तक टॉप 10 जहाज बनाने वाले देशों में शामिल होना है और 2047 तक टॉप 5 में आना है। शिपिंग में अपनी धाक जमाने के लिए भारत कई योजनाएं शुरू कर रहा है। इनमें भारत कंटेनर शिपिंग लाइन, एक कोस्टल ग्रीन शिपिंग कॉरिडोर और इनलैंड वॉटरवेज में ₹100 करोड़ का निवेश शामिल है। इसके अलावा देश में समुद्री व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सागरमाला स्टार्टअप और इनोवेशन इनिशिएटिव भी शुरू किया गया है।
आंकड़ों के मुताबिक साल 1999 में ग्लोबल शिपबिल्डिंग मार्केट में चीन की हिस्सेदारी महज 5 फीसदी थी जो 2023 में बढ़कर 50 फीसदी हो गई। जनवरी 2024 में कमर्शियल वर्ल्ड फ्लीट में चीन की हिस्सेदारी 19 फीसदी से अधिक है। शिपिंग कंटेनर्स के प्रोडक्शन में उसकी हिस्सेदारी 95 फीसदी और इंटरमोडल चेसी की ग्लोबल सप्लाई में 86 फीसदी हिस्सेदारी है। इससे पता चलता है कि ग्लोबल शिपिंग इंडस्ट्री में चीन की क्या हैसियत है।
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