



नई दिल्ली:हिजाब मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मंगलवार को ईरान का जिक्र हुआ। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील रखी कि इस्लाम की शुरुआत से हिजाब नहीं था। जब जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि कुछ विद्वानों ने कहा कि मूल शब्द ‘खिमर’ था और पर्शियन टेक्स्ट में यह हिजाब हो गया। इसपर एसजी ने कहा कि मैंने कुरान नहीं पढ़ी है मगर केवल कुरान में जिक्र होने भर से हिजाब इस्लाम की जरूरी परंपरा नहीं बन जाएगा। मेहता ने कुछ देर बाद कहा कि कई ‘संवैधानिक इस्लामिक देशों में महिलाएं हिजाब के खिलाफ लड़ रही हैं। इसपर जस्टिस धूलिया ने पूछा कि कौन से देशों में? एसजी ने जवाब दिया, ‘



सरकार की ओर से पेश हुए मेहता ने कहा कि दो तथ्य ध्यान में रखने चाहिए। पहला- 2021 तक कोई भी छात्रा हिजाब नहीं पहन रही थी। न ही कभी यह सवाल उठा। दूसरा- यह कहना बेहद गलत होगा कि नोटिफिकेशन में केवल हिजाब पर प्रतिबंध लगाया गया है। दूसरे समुदाय ने भगवा शॉल में आना शुरू कर दिया। भगवा शॉल पर भी प्रतिबंध है। एक और पहलू है। मैं बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कह रहा लेकिन अगर सरकार ऐसा कदम नहीं उठाती तो अपने संवैधानिक दायित्व को पूरा न करने की दोषी होती।
मुस्लिम याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ एडवोकेट दुष्यंत दवे पेश हुए। दवे ने कहा कि हर कोई भगवान को अलग-अलग नजर से देखता है। केरल में भगवान अयप्पा के अनुयायी काले कपड़ों में जाते हैं… हमारे कांवडियों को देखिए, आज वो भगवान शिव के भजन बजातीं म्यूजिक वैन्स के साथ चलते हैं… सबको अपनी धार्मिक स्वंतत्रता का आनंद लेने का अधिकार है। दवे ने कहा कि ‘यूनिफॉर्म समाज के बहुसंख्यक हिस्से पर एक अनावश्यक बोझ है। कई लोगों के पास यूनिफॉर्म खरीदने के पैसे नहीं होते।’ इसपर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि ‘यूनिफॉर्म लेवलर है, ताकि विसंगता न पैदा हो। आपकी अमीरी या गरीबी यूनिफॉर्म से नहीं आंकी जा सकती।’
कर्नाटक हाई कोर्ट ने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को सही ठहराया था। उसी फैसले को चुनौती देती याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। बुधवार को भी मामले में सुनवाई जारी रहेगी।
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