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रिटायर्ड IAS अनिल टुटेजा, आलोक शुक्ला और पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा के खिलाफ ईओडब्ल्यू में केस दर्ज

रायपुर। आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो (EOW) और एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) ने रिटायर्ड आईएएस अधिकारियों अनिल टुटेजा, आलोक शुक्ला, और पूर्व महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा के खिलाफ अपराध दर्ज किया है। यह एफआईआर इन तीनों आरोपियों के वाट्सएप चैट और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के प्रतिवेदन के आधार पर नागरिक आपूर्ति निगम (नान) में बड़े वित्तीय घोटाले के आरोपों के संबंध में दर्ज की गई है।

ईओडब्ल्यू के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक चंद्रेश सिंह ठाकुर द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि पूर्व कांग्रेस सरकार के दौरान इन अधिकारियों ने राशन वितरण में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की और अपने पद का दुरुपयोग किया।

एफआईआर में कहा गया है कि वर्ष 2019-20 में हाईकोर्ट में दूषित तरीके से अग्रिम जमानत प्राप्त की गई, जिसका समर्थन करने वाले कई सबूत ईओडब्ल्यू को मिले हैं। जांच में पाया गया कि 2019 से 2020 के बीच, डॉ. आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा ने अपनी स्थिति का दुरुपयोग करते हुए सतीश चंद्र वर्मा को अनुचित लाभ पहुंचाया, जिससे वे अपने कर्तव्यों का पालन गलत तरीके से कर सकें।

अपराधियों ने आपस में मिलकर एक आपराधिक षड्यंत्र रचते हुए राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो में दस्तावेजों और जानकारी में बदलाव किया, ताकि अपने खिलाफ दर्ज नान के मामले में उच्च न्यायालय में पक्ष में जवाब तैयार किया जा सके। गौरतलब है कि अनिल टुटेजा शराब घोटाले में भी ईडी और एसीबी के मामले में आरोपित हैं।

गवाही बदलने का दबाव

ईडी द्वारा पंजीकृत ईसीआईआर /01/2019 में भी अग्रिम जमानत प्राप्त करने का प्रयास किया गया। आरोपियों ने गवाहों को अपने बयान बदलने के लिए दबाव बनाया और दस्तावेजों को प्रभावित किया। ईओडब्ल्यू ने आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है।

ये है पूरा मामला

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यकाल के दौरान 13,301 राशन दुकानों में राशन वितरण में गड़बड़ी का आरोप है। चावल के मामले में अकेले 600 करोड़ रुपये का घोटाला होने का दावा किया गया है, जबकि कुल घोटाले का आंकड़ा एक हजार करोड़ रुपये से अधिक बताया जा रहा है। भाजपा का आरोप है कि स्टॉक सत्यापन न करने के बदले में हर राशन दुकान से 10 लाख रुपये वसूले गए थे। वर्ष 2019 से 2020 तक डॉ. आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा शक्तिशाली अधिकारियों के रूप में कार्यरत थे, जिनका कांग्रेस सरकार के संचालन और अधिकारियों के तबादले में सीधा हस्तक्षेप था।

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