



दिल्ली पुलिस और फर्जी सीबीआई का अधिकारी बताकर दुर्ग की एक अधिवक्ता के साथ ठगी करने वाले दो आरोपियों को पुलिस ने गुजरात से गिरफ्तार किया है। पुलिस ने आरोपियों के पास से रुपये गिनने की मशीन समेत 45 लाख का इन्डेवर फोर्ड चार पहिया वाहन भी बरामद किया है। दुर्ग सीएसपी चिराग जैन ने इस मामले का खुलासा करते हुए बताया कि दुर्ग की रहने वाली अधिवक्ता फरिहा अमीन कुरैशी ने सिटी कोतवाली थाना में शिकायत दर्ज कराई थी।



पीड़िता ने पुलिस को दी गई तहरीर में बताया कि 21 जनवरी को उसके मोबाइल पर दिल्ली पुलिस डिपार्टमेंट की ओर से एक वीडियो कॉल आई। कॉल करने वाले ने खुद को सीबीआई पुलिस, दिल्ली का अधिकारी बताते हुए कहा कि संदीप कुमार के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग ट्रैफिकिंग और आइडेंटिटी थेफ्ट के मामले में जांच चल रही है। उन्होंने बताया कि संदीप कुमार के कब्जे से 180 बैंक खाते बरामद हुए हैं, जिनमें से एक खाता पीड़िता के नाम पर एचडीएफसी बैंक, दिल्ली का है, जिसमें करीब 8.7 करोड़ रुपये जमा हैं। संदीप कुमार ने पूछताछ में कथित तौर पर बताया कि सभी खाताधारकों ने 10 प्रतिशत कमीशन लेकर व्यक्तिगत रूप से अपने नाम पर ये खाते खुलवाए थे।
पीड़िता द्वारा इस बात से इनकार करने पर फर्जी पुलिस अधिकारी ने उससे व्यक्तिगत विवरण मांगा और दावा किया कि सारा विवरण उनके पास पहले से मौजूद है। उसे तत्काल दिल्ली आकर बयान दर्ज करने के लिए कहा गया, वरना तुरंत गिरफ्तारी की धमकी दी गई। पीड़िता ने असमर्थता जताई तो उससे पैसे की मांग की गई। इसके बाद पीड़िता ने अपने भारतीय स्टेट बैंक, गंजपारा, दुर्ग के खाते से अलग-अलग चरणों में RTGS के जरिए RBI इंडिया के नाम पर कुल 41 लाख रुपये जमा कराए।
दुर्ग पुलिस की जांच में पता चला कि इस खाते का संचालक मनीष दोसी, जो राजकोट, गुजरात का निवासी और एक प्रोप्राइटर है, मुख्य आरोपी है। बैंक के साइबर सेल, भिलाई को मनीष दोसी का वीडियो फुटेज भी मिला, जिसमें वह पैसे निकालते दिखाई दे रहा है। पुलिस को जानकारी मिली कि यह रकम राजकोट नागरिक सहकारी बैंक, मोरबी शाखा में एक संस्था के खाते में जमा की गई थी। इसके बाद दुर्ग पुलिस ने एक टीम गुजरात भेजी और आरोपी मनीष दोसी को गिरफ्तार कर लिया।
पूछताछ में मनीष दोसी ने बताया कि उसने यह रकम अपने खाते में असरफ खान नामक एक अन्य आरोपी के कहने पर जमा की थी। असरफ खान के मोबाइल की जांच में क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित ऐप्स मिले। कड़ाई से पूछताछ करने पर उसने खुलासा किया कि साइबर ठगी से प्राप्त पैसों को क्रिप्टोकरेंसी में निवेश कर दुबई भेजा जाता था और स्थानीय अगड़िया (हवाला एजेंट) के जरिए हवाला कारोबार में इस्तेमाल किया जाता था। साइबर ठगी से मिला पैसा चंद घंटों में विभिन्न खातों के जरिए स्थानांतरित कर दिया जाता था, जिसके बाद गुजरात के स्थानीय अगड़िया इसे अन्य आरोपियों तक पहुंचाते थे।