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नायडू की स्पेशल स्टेट, तो नीतीश की 3 अहम मंत्रालयों की डिमांड! क्या बुरी तरह फंसी भाजपा?

देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के नेतृत्व में ‘अबकी बार गठबंधन वाली सरकार’ की कवायद तेज हो गई है. इस बीच एडीए में शामिल नीतीश कुमार की जेडीयू और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी की डिमांड सामने आई है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, नीतीश कुमार ने समर्थन के एवज में तीन अहम मंत्रालयों की मांग की है, तो वहीं टीडीपी की आंध्र प्रदेश के लिए स्पेशल स्टेटस समेत अन्य मांगे हैं.

 आइए, पहले नीतीश कुमार की मांगों के बारे में जान लेते हैं…

NDA में तेलुगू देशम पार्टी (TDP) के बाद दूसरे नंबर की पार्टी नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने कैबिनेट में महत्वपूर्ण मंत्रालयों की डिमांड की है. इन मंत्रालयों में रेल मंत्रालय भी शामिल है. नीतीश गुरुवार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में NDA सहयोगियों की बैठक में मौजूद थे. इससे कुछ घंटे पहले उन्होंने RJD के तेजस्वी यादव के साथ फ्लाइट के अंदर की तस्वीर शेयर की थी. JDU प्रवक्ता और एमएलसी नीरज कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि ये महज संयोग है कि दोनों नेता एक ही फ्लाइट से दिल्ली जा रहे थे. हम एनडीए के साथ मजबूती से खड़े हैं और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार सरकार बनने की उम्मीद कर रहे हैं.

सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार के इस ‘मजबूत’ समर्थन के लिए भाजपा को ‘बड़ी’ कीमत चुकानी पड़ेगी. 2019 के विपरीत, जब JDU ने 16 सीटें जीती थीं, तब उसे एक मंत्री पद की पेशकश की गई थी, क्योंकि भाजपा अपने दम पर बहुमत में थी. इस बार JDU को 12 सीटें मिली हैं, लेकिन ये 2019 में मिली 16 सीटों से अधिक कीमती हैं.

रेलवे, ग्रामीण विकास, जल शक्ति मंत्रालय पर नजर

सूत्रों के अनुसार, JDU की नज़र रेलवे, ग्रामीण विकास और जल शक्ति मंत्रालय पर है. अगर इनमें से किसी पर बात नहीं भी बनती है, तो विकल्प के तौर पर परिवहन और कृषि मंत्रालय रखा गया है. JDU के एक नेता ने कहा कि नीतीश एनडीए सरकार में रेलवे, कृषि और परिवहन मंत्रालय संभाल चुके हैं. हम चाहते हैं कि हमारे सांसद ऐसे विभाग संभालें जो राज्य के विकास में मदद कर सकें. बिहार में जल संकट के साथ-साथ घटते जल स्तर और बाढ़ की चुनौतियों का सामना करने के लिए जल शक्ति मंत्रालय महत्वपूर्ण है. हम नदी परियोजनाओं को आपस में जोड़ने पर भी जोर दे सकते हैं.

नेता ने तर्क दिया कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ग्रामीण बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है. उन्होंने कहा कि रेलवे का मिलना निश्चित रूप से बिहार के लिए गर्व की बात होगी. इतना ही नहीं, पार्टी नेताओं का कहना है कि जब एनडीए अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव लड़ेगी तो वे नीतीश को ही कमान सौंपना चाहेंगे. उन्होंने इस अटकल को भी खारिज कर दिया कि राज्य में निकट भविष्य में नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है.

JDU के आधा दर्जन सांसद केंद्रीय मंत्री पद की दौड़ में शामिल!

कहा जा रहा है कि संभावित केंद्रीय मंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे चल रहे लोगों में लोकसभा और राज्यसभा के JDU के आधा दर्जन से ज़्यादा सांसद हैं. सूत्रों के मुताबिक, JDU को एक उच्च जाति, एक ओबीसी कुशवाहा और एक ईबीसी नेता को शामिल करने के बीच संतुलन बनाना होगा.

इस दौड़ में JDU के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुंगेर के सांसद ललन सिंह, जो उच्च जाति से हैं. झंझारपुर के सांसद रामप्रीत मंडल, जो ईबीसी नेता हैं और वाल्मीकि नगर के सांसद सुनील कुमार, जो कुशवाहा समुदाय से हैं, शामिल हैं. सूत्रों के अनुसार, सीतामढ़ी के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर और राज्यसभा सांसद संजय कुमार झा भी दौड़ में हो सकते हैं, लेकिन नीतीश के साथ अपने पुराने संबंधों के कारण ललन सिंह का नाम सबसे आगे है.

अब बात चंद्रबाबू नायडू के टीडीपी की डिमांड की…

तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के अध्यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू बुधवार यानी 4 जून को राष्ट्रीय राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरे, जब उनकी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में 16 सीटें जीतीं. टीडीपी आंध्र प्रदेश में जन सेना पार्टी और भाजपा के साथ गठबंधन में है. नायडू का समर्थन भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है, जिसकी लोकसभा में केवल 240 सीटें हैं. अब भाजपा को समर्थन देने के बदले में नायडू कई डिमांड रख सकते हैं. इनमें सबसे बड़ी डिमांड आंध्र प्रदेश को स्पेशल स्टेटस का दर्जा देना हो सकता है.

विशेष श्रेणी का दर्जा (SCS) क्या है?

1969 में, भारत के पांचवें वित्त आयोग ने कुछ राज्यों को उनके विकास में सहायता करने, ऐतिहासिक आर्थिक या भौगोलिक नुकसान का सामना करने पर विकास को तेज़ करने के लिए स्पेशल स्टेटस की व्यवस्था शुरू की. स्पेशल स्टेटस का दर्जा देने के लिए आमतौर पर कठिन और पहाड़ी इलाके, कम जनसंख्या घनत्व या बड़ी जनजातीय आबादी, सीमाओं के साथ रणनीतिक स्थान आदि कारकों पर विचार किया जाता था. इस प्रणाली को 14वें वित्त आयोग की सिफारिश पर समाप्त कर दिया गया था, जिसमें सुझाव दिया गया था कि राज्यों के संसाधन अंतर को मौजूदा 32% से बढ़ाकर 42% कर के हस्तांतरण के माध्यम से पूरा किया जाना चाहिए.

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