



भारत के गुजरात राज्य के कच्छ जिले में एक अनोखी खोज ने सबको चौंका दिया है। यहां की पनंध्रो लिग्नाइट खदान में वैज्ञानिकों को एक बहुत पुराने और विशाल सांप के जीवाश्म मिले हैं। ऐसा माना जा रहा है कि यह सांप करीब 4.7 करोड़ साल पहले दलदली इलाकों में पाया जाता था। इस सांप की कुछ रीढ़ की हड्डियाँ अब भी उसी स्थिति में पाई गई हैं, जैसी उस जमाने में थी। इसकी लंबाई और आकार को देखकर वैज्ञानिकों का मानना है कि यह अब तक पाए गए सबसे बड़े सांपों में से एक हो सकता है।
वासुकी इंडिकस की खोज



यह खोज जीवाश्म विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है और यह उस समय की जानकारी देती है जब विशाल सरीसृप पृथ्वी पर घूमते थे। इस विशाल सांप का जीवाश्म में, रीढ़ की 27 हड्डियाँ (कशेरुकाएं) अब भी सही हालत में मिली हैं। इस सांप को वैज्ञानिकों ने नाम दिया है – वासुकी इंडिकस। यह नाम हिंदू धर्म में भगवान शिव के गले में लिपटे पौराणिक नाग वासुकी से प्रेरित है। इस खोज को एक बड़ी सफलता माना जा रहा है, क्योंकि माना जा रहा है कि इस सांप की लंबाई 11 से 15 मीटर रही होगी। यह लंबाई टाइटेनोबोआ नाम के एक सांप जितनी है, जो कभी दक्षिण अमेरिका के गर्म इलाकों में पाया जाता था और अब विलुप्त हो चुका है।
लंबे रिसर्च के बाद हुआ खुलासा
रुड़की स्थित आईआईटी के वैज्ञानिकों को साल 2005 में कच्छ की एक कोयला खदान में 27 बड़े-बड़े कंकाल के टुकड़े मिले थे। इनमें कुछ हड्डियां आपस में जुड़ी हुई थीं। तब से अब तक इन जीवाश्म को एक विशाल मगरमच्छ जैसे किसी प्राणी के अवशेष माना जा रहा था। लेकिन लंबी रिसर्च के बाद अब वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि ये असल में दुनिया के अब तक के सबसे बड़े सांपों में से एक था।
IIT रुड़की के वैज्ञानिकों ने की बड़ी खोज
यह अनोखा जीवाश्म, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) रुड़की के वैज्ञानिकों ने खोजा है। इस टीम का नेतृत्व जीवाश्म विज्ञानी देबजीत दत्ता कर रहे थे। उनकी यह खोज प्रतिष्ठित जर्नल ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित हुई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि वासुकी इंडिकस एक धीमी गति से चलने वाला शिकारी था, जो अचानक हमला कर शिकार पकड़ता था। इसका शिकार करने का तरीका आज के अजगर और एनाकोंडा जैसा रहा होगा। ऐसा लगता है कि यह साँप भी अपने शिकार को लपेटकर और दबाकर मारता था, जैसे आज के बड़े साँप करते हैं।
धरती पर था ऐसा मौसम
इस खोज से न केवल साँप की लंबाई और आकार का पता चलता है, बल्कि यह भी समझ में आता है कि वह किस तरह के माहौल में रहता था। वैज्ञानिकों के अनुसार, वासुकी इंडिकस जिस समय ज़िंदा था यानी मध्य इओसीन युग में। उस समय धरती का तापमान आज की तुलना में काफी ज्यादा गर्म था और मौसम बहुत नमी वाला (आर्द्र) हुआ करता था। इसका मतलब है कि वह साँप दलदली, गर्म और नम जगहों में फल-फूल रहा था।