कोविड दौर में आवारा कुत्तों के व्यवहार में बदलाव

कोरोना संक्रमण काल में मनुष्य ही नहीं जानवरों के आहार और व्यवहार में बदलाव आया है। गली में घूमने वाले आवारा कुत्तों के खाना खोजने और खाने के समय में भी बदलाव देखने को मिला। इस बारे में वेटनरी डा उमेश गुप्ता ने अपना शोध पत्र करनाल स्थित वेटनरी विवि के द्वारा जारी शोध पत्र में प्रकाशित करने के लिए भेजा है। डा उमेश गुप्ता ने कोरोना संक्रमण काल के कुत्तों के खाने की आदत और प्रवास को लेकर शोध किया। उन्होंने अपने शोध का आधार शहरी कुत्तों को बनाया।

शहर की गलियों में घूमने वाले कुत्ते हमारे द्वारा दिए गए खाने के साथ-साथ ठेले और होटल के बचे हुए खाने पर निर्भर रहते हैं। इसके साथ ही वे अपना खाना खोजने के लिए एक इलाका बनाते हैं। मगर लाकडाउन में होटल और ठेले से मिलने वाला खाना पूरी तरह से बंद हो गया। इससे कुत्तों के लिए खाने की बड़ी समस्या हो गई। इस विपरीत परिस्थिति में कुत्तों ने खाना खोजने के इलाके का विस्तार किया। इसके साथ ही गांव के पास वाले शहर के कुत्ते गांव की तरफ प्रवास कर गए। इससे भी बड़ी बात ये रही कि खाने की कमी से निपटने के लिए उन्होंने अपना स्टारवेशन टाइम (भूख लगने का वक्त) बढ़ा लिया। इससे पता चलता है कि घरेलू कुत्ते विपरीत परिस्थिति में भी जीवित रहने के लिए फिट हैं।

आवारा कुत्तों को रांची की एक संस्थान होप एंड एनिमल ट्रस्ट सहारा दे रही है। इस संस्थान ने रांची को रैबिज फ्री बनाने में बड़ा सहयोग दिया है। इस संस्थान की पैट्रर्न साक्षी धौनी हैं। इस संस्थान से जुड़े हुए प्रवीण ओहल बताते हैं कि तीन वर्ष की मेहनत के बाद हमने रांची को रैबिज फ्री का खिताब दिलाया। इसे अभी तक हम मेनटेन कर रहे हैं। प्रवीण बताते हैं कि वर्तमान में संस्थान आवारा कुत्तों को मुफ्त में वैक्सीन देने के साथ किसी भी बीमारी का इलाज करती है। इसके साथ ही कुत्तों का बंध्याकरण किया जा रहा है। इससे आवारा कुत्तों की संख्या में भी कमी आ रही है। हम लोगों को कुत्तों को गोद लेने के लिए भी प्रोत्साहित कर रहे हैं।

इसमें वेटनरी दवाओं की एफीकेसी टेस्ट करने के लिए साइंटिस्ट ऑफ द ईयर का पुरस्कार दिया गया। इसके साथ ही डा प्रवीण कुमार को कुत्तों में त्वचा रोग पर शोध के लिए भी सम्मानित किया गया है। उन्होंने अस्पताल पहुंचने वाले पालतू कुत्तों पर शोध करके पाया कि 34 प्रतिशत कुत्तों में त्वचा रोग की समस्या होती है। इसमें सबसे ज्यादा एक से तीन वर्ष के कुत्ते रोग ग्रस्त होते हैं।

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