






बालाघाट के वरिष्ठ चिकित्सक एमडी मेडिसिन (कार्डियो डॉयबिटोलाजिस्ट) डॉ. बीएम शरणागत का कहना है कि अगर डिवाइस एसीटोन से शर्करा का स्तर बता रही है, तो मधुमेह रोगियों के लिए कारगर साबित होगी। इसे बेहतर किया जा सकता है। मधुमेह रोग विशेषज्ञ व जनरल फिजिशियन डॉ. वेदप्रकाश लिल्हारे का कहना है कि ये डिवाइस उन मधुमेह रोगियों के लिए कारगर होगा, जिनके शरीर में कीटोन बनता है। इसी से एसीटोन का उत्सर्जन होता है।
ब्रीथ एनालाइजर की तर्ज पर तैयार किया डिवाइस
डॉ. अगासे ने बताया कि इसे तैयार करने का आइडिया मधुमेह के मरीज के मेटाबालिज्म का अध्ययन करने के दौरान आया। इसमें पता चला कि मेटाबालिज्म कीटोजेनिक मेटाबालिज्म की तरफ शिफ्ट हो जाता है। कीटोन का ही एक प्रकार है एसीटोन, जो मधुमेह रोगी द्वारा श्वास लेने में नाक के माध्यम से निकलता है। एसीटोन गैस स्वरूप में होता है। टीम ने ब्रीथ एनालाइजर की तर्ज पर यह यंत्र तैयार किया।
इससे शर्करा पता करने वाली मशीन में उंगली से रक्त निकालकर स्ट्रिप पर रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसमें लगा सेंसर रोगी की श्वास से निकलने वाले एसीटोन से उसके शरीर में शुगर की मात्रा दर्शाएगा। टीम में हर्ष तिवारी ने भी अहम भूमिका निभाई है। टीम की पल्लवी ऐड़े ने दिल्ली में प्रोजेक्ट को पीएम के सामने प्रदर्शित किया। इस प्रोजेक्ट को जिला, संभाग, प्रदेश स्तर पर प्रथम स्थान मिल चुका है।
शर्करा के स्तर की हो सकेगी सतत निगरानी
अगर आइसीयू में भर्ती मधुमेह रोगी के शुगर की लगातार निगरानी रखनी है, तो यह यंत्र उपयोगी सिद्ध होगा। रोगी के मुंह पर मास्क के रूप में इसे रखकर स्क्रीन पर मरीज के शुगर की सतत निगरानी की जा सकेगी। हार्ट बीट की तरह स्क्रीन पर रोगी का शर्करा का स्तर स्क्रीन पर दिखाई देगा। डॉ. अगासे कैंसर बायोलाजी में पीएचडी किया है। उन्होंने बायोटेक्नोलाजी से बीएससी, जेनेटिक इंजीनियरिंग (इंदौर) से एमएससी किया है। उनका एक और प्रोजेक्ट का पेटेंट है। डॉ. अगासे के राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के 19 प्रकाशन प्रकाशित हो चुके हैं।
50 से ज्यादा मधुमेह रोगियों का किया अध्ययन
50 से ज्यादा मधुमेह रोगियों के एसीटोन की मात्रा और उसी समय उनके शरीर के ब्लड शुगर की मात्रा का अध्ययन किया गया। दोनों के बीच के समीकरण को खोजने के बाद डिवाइस तैयार किया गया। इसे एक प्रोग्राम में बदलकर इसमें सेंसर का इस्तेमाल किया। डॉ. अगासे का कहना है कि इस सेंसर को और अपडेट किया जा रहा है।
डिवाइस को विकसित करने के लिए जरूरी फंडिंग और तकनीकी सहयोग के लिए भोपाल स्थित मैनिट संस्था के इंजीनियरों ने रुचि दिखाई है। डॉ. अगासे का कहना है कि अगर कोई कंपनी एसीटोन के सेंसर को विकसित करने में सहयोग करती है, तो यह परियोजना मधुमेह रोगियों के लिए लाभप्रद सिद्ध होगी।