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सैनिक की पत्नी होना एक तपस्या… आर्मी चीफ की वाइफ ने बताया कितना चुनौतीपूर्ण होता है सब कुछ

जब सैनिक सरहद पर देश की रक्षा कर रहे होते हैं तो उनकी सलामती और विजय की कामना पूरा देश करता है। लेकिन उनके परिजन, उनका परिवार, वो कैसे खुद को संभालते हैं? एक सैनिक की पत्नी होना, कितना चुनौतीपूर्ण है? हमने AWWA (आर्मी वुमंस वेलफेयर असोसिएशन) प्रेसिडेंट और भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी की पत्नी सुनीता द्विवेदी से इस तरह के कई सवाल पूछे। उनसे बात की पूनम पाण्डे ने, बातचीत के मुख्य अंश…

सवाल: आप भारतीय सेना प्रमुख की पत्नी हैं, AWWA प्रेजिडेंट हैं, कितना चुनौतीपूर्ण होता है एक सैनिक की पत्नी होना ?
जवाब: एक सैनिक की पत्नी होना सिर्फ एक रिश्ता नहीं है, यह एक जीवंत तपस्या है। यह वो जीवन है जहां प्यार, गर्व और बलिदान एक साथ चलते हैं। जब पति सरहद पर होते हैं तो पूरे परिवार की जिम्मेदारी हमारे कंधों पर होती है। यह सफर आसान नहीं होता है लेकिन AWWA परिवार से मिला साथ हर सैनिक के परिवार को मजबूत बनाकर रखता है। मेरे लिए AWWA प्रेजिडेंट होना एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि जीवन की पूर्णता है क्योंकि मैं उस दर्द को भी जानती हूं, उस गर्व को भी और उस भावनात्मक जरूरत को भी जो हर सैनिक परिवार को होती है।

सवाल: ऑपरेशन सिंदूर जैसे मिलिट्री ऑपरेशंस के दौरान सैनिकों के परिवारों को इमोशनल सपोर्ट देने के लिए AWWA की क्या भूमिका रहती है?
जवाब: ऑपरेशन सिंदूर की सफलता सिर्फ एक मिलिट्री विजय नहीं थी बल्कि पूरे देश को गौरवान्वित करने वाला पल था। जब हमारे वीर सैनिक बॉर्डर पर अपना सबकुछ दांव पर लगातार देश की रक्षा करते हैं तो उनके पीछे एक और मजबूत मोर्चा खड़ा होता है, वो है उनका दृढ़ इच्छाशक्ति वाला परिवार। इन परिवारों को भावनात्मक संबल देना, यही AWWA का सबसे बड़ा धर्म है।

ऑपरेशन सिंदूर जैसे मौकों पर गर्व और तनाव एक साथ होता है। ऐसे में AWWA अपने सभी नेटवर्क्स, फैमिली वेलफेयर ऑर्गनाइजेशंस, हेल्प डेस्क्स, काउंसलिंग सर्कल्स को सक्रिय कर देती है, ताकि हर सैनिक की पत्नी, मां, हर बच्चा यह महसूस कर सके कि हम सब साथ-साथ हैं। हम सब एक दूसरे का सहारा और ताकत बनते हैं। मेरे लिए AWWA का मकसद है कि जब देश का सैनिक अपने प्राणों को देश पर न्योछावर करने को तैयार हो तो उसका परिवार भी आत्मबल, साहस और शक्ति का प्रतीक बनकर खड़ा रहे।

सवाल: ऑपरेशन सिंदूर की सफलता दुनिया ने देखी। आप इसे कैसे देखती है?
जवाब: ऑपरेशन सिंदूर की सफलता सैन्य गौरव गाथा के साथ ही AWWA परिवार की एकता, धैर्य और सेवा भावना की भी विजयगाथा है। यह ऑपरेशन याद दिलाता है कि जब सैनिक सरहद पर डटे रहते हैं तब AWWA उनके पीछे एक अदृश्य शक्ति बनकर खड़ी रहती है।

सवाल: जब भी कोई संघर्ष चल रहा होता है तो पूरे देश की सांसे थमी होती है और अपनी आर्म्ड फोर्सेस की हौसला अफजाई के लिए जिससे जो बन पड़ता है वे करते हैं। आर्मी चीफ की पत्नी के तौर पर आप अपने रोल को कैसे देखती हैं?
जवाब: जब कोई संघर्ष चल रहा होता है तो ऐसे वक्त में सेना प्रमुख की पत्नी के रूप में मैं अपनी भूमिका सिर्फ एक पद के रूप में नहीं बल्कि कर्तव्य और जिम्मेदारी के रूप में देखती हूं। मैं खुद को उस मजबूत नींव के रूप में देखती हूं जिस पर हमारे बहादुर सैनिक अपने परिवार के हित के लिए भरोसा करते हैं। AWWA के माध्यम से हम यह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें जरूरी सभी जानकारी, भावनात्मक समर्थन और हर तरह की मदद तुरंत उपलब्ध हो। खासकर उन परिवारों के साथ जिनके प्रियजन देश सेवा में तैनात हैं या किसी जंगी कार्यवाही में लगे हुए है।

चाहे वह बच्चों की शिक्षा हो, बुजुर्गों की देखभाल हो या किसी भी प्रकार की आपातकालीन सहायता हो, हमारा लक्ष्य त्वरित और प्रभावी समाधान प्रदान करना है। हम उन्हें एक-दूसरे से जोड़ते हैं ताकि वे अपनी भावनाओं को साझा कर सकें, एक-दूसरे का साथ दे सकें और सामूहिक रूप से इस चुनौती का सामना कर सकें। मेरी भूमिका यह सुनिश्चित करने की है कि हमारे सैनिक जब कर्तव्य पथ से लौटें तो उन्हें एक मजबूत, खुशहाल और स्थिर परिवार मिले। उनका परिवार उनकी सबसे बड़ी शक्ति है और मैं इस शक्ति को हर चुनौती के सामने अडिग बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हूं।

सवाल: आप खुद किससे प्रेरणा लेती हैं? संघर्ष के वक्त अपना ध्यान कैसे डाइवर्ट रखती हैं ताकि घर के दूसरे सदस्यों और बाकी AWWA सदस्यों को भी हौसला दे सकें?
जवाब: मेरे माता-पिता मेरे लिए प्रेरणा के स्रोत रहे हैं, जिन्होंने मुझे मूल्यों की नींव दी। मेरे पति की कर्तव्य निष्ठा और उनका मेरे ऊपर अटूट विश्वास मुझे हमेशा हौसला देते रहे हैं। सबसे गहन प्रेरणा मुझे उन वीर नारियों से मिलती है जो अपने जीवन साथी से बिछड़कर भी, हिम्मत से खड़ी रहती है और पूरे परिवार की जिम्मेदारी खुद उठाती हैं। हर सैनिक की पत्नी जो अकेले घर संभालती हैं, जो अकेले बच्चों की परवरिश करती है, हर त्यौहार अकेले मनाती है लेकिन कभी शिकायत नहीं करती, वो मेरी प्रेरणा स्रोत हैं।

संकट के समय मेरी पहली कोशिश यही होती है कि मैं खुद को स्थिर रखूं क्योंकि मैं जानती हूँ कि अगर मेरी आँखों में भय होगा तो मेरे घर के बच्चों और AWWA की बहनों की हिम्मत भी डगमगाएगी। मैं खुद को सकारात्मक बनाए रखने के लिए योग, ध्यान और AWWA की सेवा से जुड़ी गतिविधियों में खुद को व्यस्त रखती हूँ। मेरा विश्वास है कि नेतृत्व वही करता है, जो सबसे पहले खुद को संभालना जानता है।

सवाल: हाल ही में NDA से महिला कैडेट्स का बैच पासआउट हुआ है, सेना में महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। क्या आपको लगता है कि आगे चलकर AWWA का स्वरूप बदलने की जरूरत पड़ सकती है?
जवाब: NDA से महिला कैडेट्स का पासआउट होना सिर्फ प्रतीकात्मक क्षण नहीं, बल्कि सशक्तिकरण और समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह उन सभी युवतियों के लिए प्रेरणा है जिन्होंने कभी सोचा था कि सेना सिर्फ पुरुषों का क्षेत्र है। इन महिला कैडेट्स ने ना केवल शारीरिक और मानसिक कसौटियों को पार किया है बल्कि समाज की वर्षों पुरानी मान्यताओं को भी चुनौती दी है। वह सिर्फ एक बैच नहीं है वह एक युग का आरंभ है। एक महिला जब वर्दी पहनती है तो वह सिर्फ जिम्मदारी नहीं उठाती, वह सदियों से चली आ रही परंपराओं को तोड़ती है और भविष्य की पीढ़ियों को राह दिखाती है। जहां तक AWWA का सवाल है तो हां, परिवर्तन समय की मांग है। AWWA हमेशा एक जीवंत संस्था रही है जो हर परिवर्तन के साथ और अधिक प्रासंगिक बनी है।

अब जब महिलाएं खुद सेना में अधिकारी बन रही हैं तो हमारे मंच को भी उन अनुभवों, उन चुनौतियों और उन विजयों को आत्मसात करना होगा। हमें उनके लिए ऐसे मंच तैयार करने होंगे, जो उनके कैरियर विकास, मानसिक संतुलन, मातृत्व और जीवन प्रबंधन को समझें और उनका संबल बनें। यही वजह है कि हमने AWWA के नाम को आर्मी वाइव्स वेलफेयर असोसिएशन से बदलकर आर्मी वुमंस वेलफेयर असोसिएशन कर दिया है, जो हमारी व्यापक सोच और समावेशी दृष्टिकोण का प्रतीक है।

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