



इस्लामाबाद: पहलगाम हमले के बाद बढ़ी तनातनी के बीच 6 मई की रात को भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाते हुए पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर मिसाइल हमले कर दिए। पाकिस्तान की ओर से भी हमलों की कोशिश हुई और दोनों देश युद्ध जैसी स्थिति में पहुंच गए। इसके बाद पाकिस्तान की ओर से शनिवार को ऑपरेशन बुनयान उल मरसूस का ऐलान कर दिया गया। हालांकि शनिवार शाम को दोनों पक्षों में सीजफायर की बात सामने आ गई। भारत का ऑपरेशन सिंदूर कितना कामयाब रहा और पाकिस्तान का बुनयान उल मरसूस कितना असरदार था। इस पर अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने सात प्वाइंट में अपनी बात रखी है।



पाक सेना पर आक्रामक रहने वाले अमलरुल्लाह सालेह ने ट्विटर पर लिखा, पहली बात संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गतिरोध की स्थिति को समझते हुए भारत ने 1945 के पांचों देशों से सहानुभूति मांगने की कोशिश नहीं की। ऑपरेशन सिंदूर ने स्पष्ट रूप से आत्मविश्वास और वास्तविक रणनीतिक स्वायत्तता और संप्रभुता की मजबूत भावना का प्रदर्शन किया।
दूसरा– पहली बार भारत ने इस धारणा को तोड़ दिया कि आतंकवाद और आतंकवादी समर्थक अलग होते हैं। उसने दोनों को निशाना बनाते हुए यह धारणा तोड़ दी कि पाकिस्तान के कुछ शक्तिशाली तत्व आतंकवादियों को समर्थन देते है। यह एक नया प्रतिमान है। इसे क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव माना जाना चाहिए।
तीसरा– लड़ाई चल रही थी और युद्ध की योजना बन रही थी। लड़ाई के बीच में पाकिस्तान ने आईएमएफ से ऋण के लिए बातचीत की, जिसने आश्चर्यजनक रूप से इसे मंजूरी दे दी। पाकिस्तान युद्ध को वित्तपोषित करने के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम नहीं है लेकिन आईएमएफ ऋण से युद्ध नहीं जीते जाते हैं।
चौथा– रणनीतिक धैर्य और सांस्कृतिक संयम की एक सीमा होती है। उस सीमा की परीक्षा 22 अप्रैल को आतंकवादियों ने ली। शायद वे वही चाहते थे जो हुआ। हालांकि उन्हें अपने काम से कोई लाभ नहीं हुआ। शायद वे भारत को सार्वजनिक रूप से अपमानित करना चाहते थे। वे मानसिक रूप से 2008 में फंस गए हैं।