



रायपुर: डॉ. आंबेडकर अस्पताल, यह प्रदेश का सबसे बड़ा और सबसे अधिक भरोसेमंद सरकारी अस्पताल माना जाता है। यहां की व्यवस्था एक तस्वीर ने पूरी तरह बेनकाब कर दी। तस्वीर में एक मरीज, जिसके शरीर में यूरिन पाइप जुड़ा हुआ है, खुद अपने हाथों में यूरिन बैग और दवाइयों का थैला लिए अस्पताल परिसर में अकेले खड़ा है।



न कोई व्हीलचेयर, न स्ट्रेचर, न कोई वार्डबाय या सहायक कर्मचारी। ये दृश्य सिर्फ एक मरीज की व्यथा नहीं है, ये उस पूरे सिस्टम की कलई खोल रहा है जो मुफ्त इलाज और जनकल्याणकारी स्वास्थ्य सेवा के बड़े-बड़े दावे करता है।
रोजाना तीन हजार मरीजों का ओपीडी में उपचार
आंबेडकर अस्पताल में रोजाना तीन हजार से अधिक मरीज ओपीडी में पहुंचते हैं और सैकड़ों को भर्ती किया जाता है। इतनी बड़ी संख्या में मरीजों के आने के बावजूद अस्पताल में पर्याप्त स्टाफ नहीं, स्ट्रेचर या व्हीलचेयर की व्यवस्था नहीं और जो है भी, वो अक्सर अनुपलब्ध रहता है या मरीजों के स्वजनों को खुद खींचना पड़ता है।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सभी व्यवस्थाएं मौजूद हैं, लेकिन हकीकत इसके विपरीत है। स्ट्रेचर-बाय, वार्ड-बाय, नर्सिंग स्टाफ और अटेंडेंट की भारी कमी से मरीज बेहाल हैं। कई बार मरीजों को खुद अपनी स्थिति संभालते देखा जाता है, जैसे कि इस तस्वीर में साफ नजर आ रहा है।
ग्रामीण इलाके से आते हैं अधिकतर मरीज
यदि राजधानी के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में यह हाल है, तो फिर दूर-दराज के अस्पतालों में स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं। सरकार को इस गंभीर स्थिति का संज्ञान लेना चाहिए और मरीजों की गरिमा व सुरक्षा के लिए व्यवस्था तत्काल दुरुस्त करनी चाहिए।
शिकायत के बाद भी सुनवाई नहीं
मरीज के स्वजन का कहना है कि उन्हें वार्ड तक मरीज को पहुंचाने में घंटों इंतजार करना पड़ता है। कोई मदद नहीं मिलती। शिकायत करने पर या तो टालमटोल होता है या जवाब मिलता है और मरीज भी हैं, इंतजार करो। स्वास्थ्य विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों ने इसे स्वास्थ्य व्यवस्था की अमानवीयता करार देते हुए कहा है कि आंबेडकर अस्पताल को तत्काल प्रशासनिक सुधार की जरूरत है।
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