



छत्तीसगढ़ में सरगुजा राजपरिवार के स्वामित्व वाले अलखनंदा टॉकीज का लाइसेंस दुर्भावनापूर्ण तरीके से निरस्त करने के 33 साल पुराने बहुचर्चित मामले में बिलासपुर उच्च न्यायालय ने तत्कालीन कलेक्टर टीएस छतवाल को दोषी माना है। न्यायालय ने आदेश दिया है कि छतवाल राजपरिवार को ब्याज सहित 34,795 रुपये की क्षतिपूर्ति राशि का भुगतान करें।



जेएनएन, अंबिकापुर। छत्तीसगढ़ में सरगुजा राजपरिवार के स्वामित्व वाले अलखनंदा टॉकीज का लाइसेंस दुर्भावनापूर्ण तरीके से निरस्त करने के 33 साल पुराने बहुचर्चित मामले में बिलासपुर उच्च न्यायालय ने तत्कालीन कलेक्टर टीएस छतवाल को दोषी माना है। न्यायालय ने आदेश दिया है कि छतवाल राजपरिवार को ब्याज सहित 34,795 रुपये की क्षतिपूर्ति राशि का भुगतान करें।
यह मामला वर्ष 1992 का है, जब टीएस सिंहदेव द्वारा संचालित अलकनंदा टॉकीज का लाइसेंस निरस्त कर दिया गया था। लाइसेंस निरस्ती की यह कार्रवाई उस राजनीतिक हलचल के बीच हुई थी, जब वाड्रफनगर के बिजाकुरा गांव में विशेष पिछड़ी जनजाति के रिबई पंडो और उसके परिवार के दो अन्य बच्चों की भूख से मौत की घटना ने तूल पकड़ा हुआ था।
राजपरिवार की सदस्य टीएस सिंहदेव की मां पूर्व मंत्री कांग्रेस नेत्री देवेंद्र कुमारी सिंहदेव ने मामले को लेकर तत्कालीन कलेक्टर के निलंबन की मांग की थी। आदिवासी परिवार की भूख से मौत के मामले ने इतना तूल पकड़ा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नर¨सह राव को अप्रैल 1992 में स्वयं वाड्रफनगर आकर स्थिति का जायजा लेना पड़ा था।सरगुजा राजपरिवार के अरुणेश्वर शरण सिंहदेव के भाई की स्वामित्व वाली अलकनंदा टाकीज को नियमानुसार दो मार्च को सिनेमा संचालन का लाइसेंस जारी किया गया था। टाकीज का संचालन उनके बड़े भाई टीएस सिंहदेव कर रहे थे। इसी दौरान आदिवासी परिवार की भूख से मौत की घटना ने पूरे प्रदेश में हलचल मचा दी थी।
मुद्दे को पूर्व मंत्री वरिष्ठ कांग्रेस नेता देवेंद्र कुमारी सिंहदेव ने उठाया था। उस समय प्रदेश में भाजपा के सुंदरलाल पटवा की सरकार थी। बढ़ते राजनीतिक तनाव के बीच 19 अप्रैल 1992 को तत्कालीन कलेक्टर टीएस छतवाल ने अलकनंदा टाकीज का लाइसेंस निरस्त करने के लिए नोटिस जारी किया।
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