



रायपुर। साइबर ठगी के मामलों पर नियंत्रण के लिए पुलिस अब और सख्ती करने जा रही है। पुलिस अब तक ठगी करने वाले अपराधियों को पकड़ रही थी। मगर, अब डाटा लीक या चोरी करने वालों पर भी शिकंजा कसा जाएगा।



पुलिस अब ऐसी कंपनियों और एजेंसियों को भी साइबर ठगी का आरोपित बनाएगी, जिनसे लीक हुए डाटा की मदद से उपभोक्ता से ठगी हुई है। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में साइबर क्राइम सेल ने ठगी के मामलों में जिन आरोपितों को पकड़ा है, उनसे पूछताछ में यह बात सामने आई है कि उन्हें यह डाटा डार्कवेब के जरिए मिला है।
कंपनी के कर्मचारी ही चुराते हैं डाटा
बताते चलें कि इंटरनेट का वह हिस्सा, जहां लोग पहचान और लोकेशन छुपाकर अवैध काम करते हैं, उसे डार्क वेब कहा जाता है। पुलिस की पड़ताल में यह भी सामने आया कि डार्कवेब पर डाटा उपलब्ध कराने के लिए कंपनियों के सर्वर को हैक कर पेशेवर हैकर उपभोक्ताओं की निजी जानकारी चुरा रहे हैं।
कई मामलों में कंपनी का ही कोई कर्मचारी यह डाटा चुराकर बेच देता है। चोरी किया गया यह डाटा 35 से 50 रुपये में प्रति उपभोक्ता के रेट पर डार्कवेब में बेचा जा रहा है। पुलिस का मानना है कि अगर कंपनियां डाटा की सुरक्षा के प्रति सजग रहें, तो ऐसी चोरी रोकी जा सकी है।
कंपनियों को 6 घंटे में करानी होगी रिपोर्ट
- नियमानुसार संस्थाओं को अपने यहां एक मुख्य दूरसंचार सुरक्षा अधिकारी नियुक्त करना होगा। अगर उनके यहां हैकिंग या डाटा चोरी की घटना का पता चलता है तो छह घंटे के भीतर इसकी जानकारी जांच एजेंसियों को देनी होगी।
- घटना के 24 घंटे के भीतर चोरी हुए डाटा से प्रभावित उपभोक्ता की जानकारी, भौगोलिक क्षेत्र, इस चोरी का संभावित प्रभाव और उपभोक्ता को किसी अपराध से बचाने के लिए किए जा सकने वाले उपाय सहित सभी जानकारी बतानी होगी। ऐसा नहीं करने पर उन पर कार्रवाई हो सकती है।
नए दूरसंचार कानून ने दी कार्रवाई की ताकत
अब तक जांच एजेंसियां डाटा चोरी के लिए कंपनियों की लापरवाही को जिम्मेदार तो मान रही थीं। मगर, कार्रवाई का अधिकार उनके पास नहीं था। नए दूरसंचार कानून ने कार्रवाई की ताकत दी है। साइबर अपराधों में यदि किसी कंपनी की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संलिप्तता है, तो उस पर कार्रवाई हो सकती है।